परिचय
Monday, December 21, 2009
यादें
पुरानी यादें हमारे जीवन से इस प्रकार जुडी होती है कि हम कितनी भी कोशिश करें उन्हें भूलने कि पर वो कहीं ना कहीं हमारे जीवन में फिर लौट ही आती है। कुछ यादें बहुत सुहानी होती है जिन्हें हम भूल तो जाते है पर जब वो हमें याद आती है तो हमारे जीवन में एक नयी उमंग भर देती है वो अहसास करा जाती है जो सालों पहले हमनें महसूस किया था। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ जब मैंने १५ साल बाद उसे दुबारा देखा। मेरा नाम प्रेरणा है। मैं बंगलोर से दिल्ली वापस आ रही थी, हवाई अड्डे पर खड़ी अपनी फलाईट का इंतजार कर रही थी। मेरी फलाईट में अभी २ घंटे बाकि थे, कि अचानक ही मेरी नज़र सामने खड़े एक शख्स पर ठहर गयी। उसे देखते ही मैं १५ साल पीछे लौट आई जब मैंने उसे पहली बार देखा था। हमारे ही ऑफिस में मैंने उसे पहली बार देखा था और देखते ही मैं उसकी और आकर्षित होने लगी मन में उसके लिए एक अलग सी जगह बन गयी थी। ऐसा लगता मानो समय रुक जाये और मैं एक टक उसको देखती रहूँ, शायद मुझे उससे प्यार हो गया था। मैं हमेशा उस के बारे में ही सोचती रहती, मेरे कानों में उसी का नाम गूंजता रहता। और नाम भी इतना प्यारा था अनुराग। केवल एक बार देखने पर ऐसा हाल अगर कभी बात करने का मौका मिला तो क्या होगा, बस यही सवाल मैं अपने आप से पूछती। मेरे ऑफिस में वो मेरे सिनीयर थे और सबसे बुरी बात ये थी की मुझे उनको रिपोर्ट भी नहीं करना होता था। मैं हमेशा यही सोचती कि शायद मेरी और उसकी बात कभी नहीं होगी। मुझे बस इसी का इंतज़ार रहता की कब मैं अनुराग को देख पाऊँगी। और एक दिन मुझे ये खबर मिली की वो हम सब से मिलने के लिए हमारे ही डिपार्टमेंट में आ रहे है। इतना सुनना था कि मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा मन ही मन मैं खुश होने लगी और भगवान् को धन्यवाद दिया की भगवान् ने मुझे एक बार तो उसके सामने जाने का और उन से बात करने का मौका दिया। अब मुझे बेसब्री से उस पल का इंतज़ार था जब वो हमसे मिलने आये। आखिर वो पल आ ही गया, हम सब अपने सिनीयर के साथ उनके इंतज़ार में खड़े थे कि सामने से वो आते दिखाई दिया। मेरे मन में अजीब सी ख़ुशी थी जैसे कि मुझे ना जाने कोण सा खज़ाना मिल गया हो। उसके बाद उनसे हम सब का परिचय करवाया गया और फिर मुझे अपने काम का बारे में उन्हें बताने क लिए कहा गया। मैं उनके ही साथ वाली कुर्सी पर बैठ कर अपने काम के बारे में उन्हें बताने लगी। पर मेरी नज़र तो उन पर ही थी। और वो कंप्यूटर कि तरफ देखते रहे। थोड़ी देर में जब मैंने अपनी बात पूरी कर ली और उन्हें अपने काम के बारे में पूरी जानकारी दे दी तब वो हमारे डिपार्टमेंट से हम सब को बाय कर के चले गए। हम सब वापिस अपनी जगह पर आ गए और अपने कामों में लग गए। पर मेरी आखों के आगे तो अनुराग का ही चेहरा घूम रहा था। पता ही नहीं चला कि कब ६ बज गए और ऑफिस कि छुट्टी हो गयी। घर पहुचने पर भी मेरे दिमाग में अनुराग का ही नाम था। मैंने जल्दी जल्दी घर का काम समेटा और सोने की तैयारी करने लगी। लगभग १०:३० तक अपना काम ख़तम कर मैं बिस्तरे में सोने चली गयी। पर नींद किसे आती मैं घंटो तक अनुराग के बारे में सोचती रही। और ना जाने कब नींद आ गयी। सुबह भी मेरी नींद जल्दी ही खुल गयी लेकिन फिर भी मैं उठी नहीं और लेटे लेटे अनुराग के ही खयालो में खो गयी। तभी घडी पर नज़र पड़ी तो देखा ८ बज चुके थे। उठने का मन तो नहीं था पर फिर ऑफिस जा कर अनुराग को देखने की इच्छा ने उठने पर मजबूर कर दिया। अब तो रोज़ यही होता रात भर अनुराग के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सो जाती और सुबह जब भी आखें खुलती तो फिर से उसी क बारे में सोचने लगती। बस यूँ ही दिन बीत गए और एक दिन मुझे खबर मिली की अनुराग की सगाई हो गयी है। पर पता नहीं मुझे इस खबर को सुन कर कोई दुःख नहीं हुआ। क्योकि शायद मैं ये बहुत अच्छी तरह जानती थी कि अनुराग बस मेरे खयालो में ही रह सकते है मेरे जीवन में नहीं। जल्दी ही अनुराग कि शादी कि खबर भी आ गयी और हम सब ने मिल कर उनको शादी कि मुबारकबाद भी दी। पर अनुराग शादी के बाद भी मेरे लिए वो ही अनुराग रहे जो वो तब थे जब मैंने उन्हें पहली बार देखा था। धीरे - धीरे समय बीतता गया और मैं अनुराग कि यादों के साथ अपने काम में व्यस्त हो गयी। कुछ समय बाद ही मैंने अपनी जॉब बदल ली और अपनी जिन्दगी में व्यस्त हो गयी। पर आज फिर से अनुराग को इस तरह देख कर मेरे मन में उसके लिए वही अहसास होने लगा जो पहली बार उसे देख कर हुआ था। और तब कि तरह ही मैंने आज भी उसे अपने मन तक ही रखा। बस मैं उसे देख कर मन ही मन खुश हों गयी। और वो ना जाने कब वहां से चले गए। पर वो याद मेरे मन में फिर से उनके प्यार का अहसास जगा गयी।
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1 comment:
kafi acchi kahani hai,aur kuch likhte raho
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