परिचय
Thursday, January 7, 2010
सीटी
सीटी सुनने में कितना अजीब सा नाम लगता है ना। सीटी मेरे पालतू कुत्ते का नाम था। वैसे तो मुझे सभी जानवर अच्छे लगते है, और हमारे घर में बहुत से जानवर पाले गए परन्तु सीटी की एक अलग ही बात थी। हम उसे कभी नहीं भूल पाएंगे। सीटी हमारा पालतू कुत्ता ही नहीं हमारे घर के एक सदस्य जैसा था। मुझे ये बिलकुल याद नहीं है की वो कब से हमारे घर में था। मुझे जहाँ तक याद पड़ता है मैं उस समय बहुत छोटी थी शायद तब मैं स्कूल भी नहीं जाने लगी थी, तब सीटी हमारे घर में था। मम्मी बताती है कि सीटी का जन्म हमारे पड़ोस में ही हुआ था और सीटी के जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसकी माँ चलबसी मम्मी बताती है कि सीटी का एक भाई भी है जो हमारे ही पड़ोसियों के घर पला था। वैसे मैंने सीटी को कभी छोटा नहीं देखा, यानि जब वो एक पिल्ला था। शायद मैं तब इतनी छोटी थी कि मुझे याद नहीं कि सीटी अपने बचपन में कैसा दिखता था ? वो बहुत ही प्यारा और समझदार था हम जब भी उसे आवाज़ देते थे वो कहीं भी हो भागकर हमारे सामने खडा होकर दुम हिलाने लगता था जब भी हम कहीं से आते थे तो वो हमारे पैरों में लोटने लगता था। हमारा सीटी हल्के भूरे रंग का था तथा उससे लम्बे लम्बे बाल थे और उसका कद बाकि कुत्तों से ऊचां था। हमारे पड़ोस में और किसी के पास ऐसा कुत्ता नहीं था। हम सभी लोग सीटी को बहुत प्यार करते थे। वैसे तो पूरे दिन सीटी को हम बाँध कर नहीं रखते थे परन्तु रात में हम उससे चैन से बाँध देते थे। वैसे तो सीटी किसी को कुछ नहीं कहता था बस पूरे दिन घर के दरवाजे पर सोता था या फिर घर के अन्दर हमारे साथ खेल रहा होता था, परन्तु यदि कोई उससे मारता था तो वो उससे दूर तक दौडाता और उसके पीछे भागता था ताकि वह दुबारा ऐसा काम न करे, परन्तु उसने कभी किसी बच्चे को काटा नहीं। अगर कोई अजनबी हमारे घर में आता तो वह तब तक हमारे साथ खड़ा रहता जब तक वो अजनबी चला ना जाये। जितना ध्यान हम उस रखते उतना ही वो भी हमारा रखता। जब हम सारे भाई - बहन स्कूल जाते तो वो हमे स्कूल तक छोड़ कर आता और छुट्टी होने पर भी वो हमे स्कूल से लेने आता। वैसे तो हमारा स्कूल घर क पास ही था। फिर भी वो हमे स्कूल तक पंहुचा कर आता था। जब हमारे पिताजी ऑफिस के लिए घर से निकलते तो गली के अंत तक उनके साथ जाता। इतना काम करने के बाद वो आपना खाना खाता, जिसमें उसे ४ या ५ रोटी मिलती और साथ में एक कटोरा भर कर लस्सी मिलती थी। आपना खाना ख़त्म करने के बाद वो आराम से सो जाता। और लगभग २ घंटे सोने के बाद वो फिर से हमारे स्कूल के बाहर खड़े हमारी छुट्टी का इंतज़ार करता। और स्कूल से आने के बाद हम उस के साथ खेलते। एक दिन की बात है जब रोज़ की तरह हमने उसे चेन से बाँधा और हम सब सो गए, सीटी आराम से बैठा हुआ था कि अचानक घर में कोई घुस गया, पर हम सब आराम से सोये हुए थे। परन्तु सीटी को उस के आने कि आहट सुनाई पड़ गयी और वो उठ कर तेज तेज भोकने लगा, उसके भोंकने से हम सब की आँख खुल गयी। और उसके भोंकने की आवाज़ सुन कर चोर भी डर कर भाग गया। उस दिन सीटी की वजह से हमारे घर में चोरी होने से बच गयी। अगर उस दिन सीटी जंजीर से नहीं बंधा होता तो शायद वो चोर को भागने का भी मौका नहीं देता। उस दिन के बाद से हमने उसे रात को जंजीर से बांधना छोड़ दिया। अब सीटी रात को भी खुला रहता और पूरे घर में घूम घूम कर रात भर घर की रखवाली करता। सीटी हमारे साथ इतना घुल मिल गया था कि हमने ये कभी सोचा ही नहीं कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि सीटी हम सब को छोड़ कर चला जायेगा। सीटी कि उम्र १२ साल हो चुकी थी, अब वो पहले कि तरह चुस्त नहीं रहा था तथा ज्यादा समय सोकर ही बीताता था। पर हमने कभी इस बात पर गौर ही नहीं किया, और हमेशा ही तरह ही उसका ख्याल रखते थे। परन्तु एक दिन जब सीटी ने कुछ खाया नहीं तो हमे अजीब सा लगा, हमने सोचा कि शायद उसकी तबियत ठीक न हो और हम आपने काम में लग गए। उस दिन हमने उसे परेशान भी नहीं किया और ये सोच कर सोने दिया कि वह आराम कर रहा है। सुबह से शाम हो गयी पर सीटी सोता रहा। जब हमने उसे शाम को ढूध दिया तो उसने अपनी आँखें खोल कर हम सब को एक बार देखा हम सब को उसे देख कर ऐसा लगा जैसे वो हमे कुछ कहना चाहता हो, परन्तु बिना कुछ हरकत किये वो फिर से आँखें बंद कर के सो गया। हमें लगा कि उसकी तबियत बहुत ख़राब है और हम उसे डॉक्टर के पास ले जाने कि तैयारी करने लगे। पिताजी और भैया उसको जानवरों के डॉक्टर के पास ले गए। परन्तु अब डॉक्टर भी कुछ नहीं कर सकता था क्योकि अब उसकी उम्र पूरी हो चुकी थी। इसलिए भैया और पिताजी उससे घर ले आये। हम सारी रात उसके पास बैठे रहे, पर पता नहीं कब उस ने आपने प्राण त्याग दिए। जब हमने उससे सुबह देखा तो वह हम सब को छोड़ कर जा चुका था। हम सब बहुत दुखी थे, और हम सीटी के अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे। हमारे घर के कुछ ही दूर खाली जगह थी, जहाँ पर हमने एक गड्डा खोद कर उससे दबा दिया। और हम सब घर वापिस लौट आये। हमारा घर सीटी के बिना सूना सूना हो गया था। उस दिन हमने सीटी के गम में खाना भी नहीं खाया, और पूरे दिन सीटी को याद करते रहे।
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