Pages

परिचय


दोस्तों! कुछ कहानियाँ ब्लॉग में आपका स्वागत है यहाँ पर कुछ ऐसी कहानिया है जिनमें अहसाह छुपा है, कुछ ऐसी बातों का जो हम किसी से कह नहीं सकते पर कहानी में ढालकर उन्हें आपके सामने पेश कर सकते है। कुछ ऐसी ही दिल की बाते जो हम होंठों से नहीं कह पाते, पर फिर भी हम चाहते है कि हम वो अहसास दुसरो को बताये। दोस्तों ये जरुरी नहीं कि कहानिया केवल प्यार कि ही हो सकती है। हम अपनी सोच को या विचारों को भी कहानी का रूप दे सकते है। हम अपने आस पास के वातावरण में अगर कुछ बदलाव लाना चाहते है तो भी हम उसे कहानी में ढाल कर लोगो तक अपनी दिल कि बात पंहुचा सकते है। या फिर हम अपने समाज में हो रही बुराइयों को खत्म करने का प्रयास भी कहानी के जरिये कर सकते है।



Thursday, October 1, 2020

भगवान की दूकान

 गंगापुर, औरंगाबाद के पास स्थित एक छोटा सा क़स्बा है जहाँ रमेश अपने परिवार के साथ रहता था।  परिवार में रमेश के अलावा उसकी पत्नी, दो बच्चे, रमेश की माँ और एक छोटी बहन रहते थे। पिता की मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी उसी के ऊपर आ गयी थी। भरापूरा परिवार था, लेकिन आमंदनी कम थी। किसी तरह वह घर का खर्चा चला पाता था। अभी उसे बहन की शादी भी करनी थी जिसके लिए उसे पैसे जोड़ने थे।  रमेश रात दिन परेशान रहता था और हमेशा चिड़चिड़ा रहता था जिस वजह से घर में हमेशा कलेश ही होता था।  रमेश को समझ नहीं आ रहा था कि वो पैसो का इंतेज़ाम कैसे करे।  

रमेश हमेशा ही अपनी किस्मत को कोसता रहता।  और हमेशा भगवान से शिकायत करता रहता कि उसने उसे अमीर क्यों नहीं बनाया।  भगवान ने उसको इतनी ख़राब किस्मत क्यों दी है। रमेश भगवान से पूछता की उसके जीवन में सुख, शांति, ख़ुशी कब आएगी, क्या वो कभी चिंतामुक्त जीवन व्यतीत कर पायेगा। यही सब सोच कर रमेश अक्सर परेशान रहता। काम से घर लौटने के बाद भी वो अपने ही खयालो में खोया रहता था। जिसके कारण वह बच्चो पर भी ध्यान नहीं देता था और ना ही अपनी पत्नी के साथ समय बिता पाता था।  उसकी इसी आदत से उसकी पत्नी भी हमेशा परेशान ही रहती। घर के कलेश से उसकी माता भी बहुत दुखी रहती थी।  उन्होंने बहुत बार रमेश को समझाया भी कि वो इतनी चिंता ना करा करे, सब काम अपने समय पर हो जाते है।  भगवान कोई ना कि रास्ता जरूर दिखाते है, मनुष्य को बुरे वक़्त का सामना धैर्य से करना चाहिए।  तब तो रमेश हाँ में सिर हिला देता लेकिन फिर उसका वही हाल हो जाता। 

रमेश की एक छोटी दूकान है जिसके सामान के लिए उसे शहर जाना पड़ता है। आज भी उसे सामान खरीदने के लिए शहर जाना है इसलिए वो सुबह जल्दी ही घर से निकल गया ताकि वह शाम तक वापस आ सके। जब वह शहर पंहुचा तो बस से उतर कर सीधा मार्किट की तरफ चल दिया ।  मार्केट में हर तरह की दुकाने थी, बड़ी छोटी जिन पर अलग अलग तरह का सामान मिल रहा था।  तभी रमेश की नज़र एक छोटी सी दूकान पर गयी। दूकान के बोर्ड पर लिखा था "भगवान की दूकान"। 

रमेश को दूकान का नाम पढ़ कर थोड़ी सी हैरानी हुई तो वह दूकान के पास गया। उसने खिड़की से अंदर की तरफ झाँका परन्तु उसे कुछ दिखाई नहीं दिया। उसने सोचा की क्यों ना अंदर जाकर देखा जाये की यह कैसी दूकान है। रमेश उस दूकान के अंदर गया तो उसने देखा, बाहर से मामूली सी दिखने वाली दूकान अंदर से बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। पूरी दूकान रोशनी से जगमगा रही थी। छत पर बड़े बड़े झूमर लटके हुए थे, सुन्दर नक्काशी वाले पिलर लगे हुए थे और दीवारों पर भी बेहतरीन सजावट थी। रमेश को यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो स्वर्ग में आ गया हो। दुकान के अंदर बड़ी ही सुन्दर सुन्दर वस्तुएं रखी थी जो रमेश ने पहले कभी नहीँ देखी थी। रमेश यह सब बड़े आश्चर्य से देख रहा था। तभी सामने से उसने एक व्यक्ति को आते हुए देखा। वह व्यक्ति रमेश के पास आया और बोला :

व्यक्ति : आपका स्वागत है, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। 

रमेश : क्या सचमुच यह भगवान की दूकान है ?

व्यक्ति : जी बिल्कुल यह भगवान की ही दूकान है।  

रमेश : बाहर से तो यह बिल्कुल मामूली सी दूकान लगती है, परन्तु अंदर से बहुत ही सुन्दर दिखती है।  

व्यक्ति (मुस्कुराते हुए) : हाँ भाई ये भगवान की ही दूकान है। 

रमेश : यह जो आपने सुन्दर सुन्दर वस्तुएं सजाई हुई है, यह क्या है ?

व्यक्ति (हाथ से इशारा करते हुए) : यह आनंद है, दूसरी तरफ इशारा करते हुए यह शांति है, यह विवेक, वो धैर्य और वह चेतना है।  

रमेश : क्या हम इन्हें खरीद भी सकते है ?

व्यक्ति : जी, आप इन्हें फ्री में ले सकते है। 

रमेश (खुश होकर) : यह तो बहुत अच्छी बात है।  

रमेश : क्या मैं इन्हें एक से ज्यादा भी ले सकता हूँ ?

व्यक्ति : हाँ आप इन्हें जितना चाहे उतना ले सकते है।  

रमेश (कुछ सोचते हुए) : ठीक है भाई आप मेरे लिए सब वस्तुएँ 12 - 12 पैक कर दो। 

व्यक्ति : आप इंतज़ार कीजिये, मैं अभी आता हूँ।  

ऐसा बोल कर वह व्यक्ति अंदर चला गया और थोड़ी देर बाद बाहर आया। उसके हाथ में एक छोटा सा बॉक्स था, बॉक्स को रमेश की तरफ बढ़ाते हुए उस व्यक्ति  ने रमेश से कहा :

व्यक्ति : यह लीजिये आपके 12 - 12 पीस। 

रमेश (थोड़ा गुस्से में) : यह कैसे हो सकता है ? ये इतनी बड़ी बड़ी चीज़ें है, यह इतने छोटे से बॉक्स में कैसे आ सकती है।  

व्यक्ति (नम्रता से) : आप जिन चीज़ों को देख रहे है, हम केवल उनके बीज देते है। जिसको भी आप ये देना चाहते है, उन्हें आप ये बीज दे दो। जब आप इन बीजों की सही से देखभाल करोंगे तो यह भी बड़े होकर ऐसे ही सुन्दर बन जायेंगे।  

रमेश सब समझ गया और वह वो छोटा सा बॉक्स लेकर चला गया।  

सन्देश : दोस्तों बिल्कुल इन्ही बीजों की तरह हमारे जीवन में भी आंनद, शांति, धैर्य आदि के बीज़ हमें उस बनाने वाले ने दिए है।  हमें बस उसकी अच्छे से देखभाल करके अपने जीवन को आनंदमय बनाना है। 

Tuesday, September 29, 2020

अतीत की वापसी

शाम के 6 बजे थे अचानक नोटिफिकेशन टोन की आवाज़ सुन कर ध्यान मोबाइल की तरफ गया, मोबाइल उठाकर देखा तो फेसबुक पर किसी ने  फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी।  फेसबुक ओपन किया और चैक करने लगी, नाम देखकर हैरानी हुई और मैं अतीत की गहराइयों में चली गयी।  अतीत की वो यादें जिन्हें ना मैं याद करती थी और ना ही करना चाहती थी। बैठे बैठे मैं अतीत की यादों में इतना खो गयी की समय का पता ही नहीं चला।  तभी मेरे कानों में आवाज़ आयी नेहा - नेहा, सासु माँ पुकार रही थी। सासु माँ की आवाज़ से मैं अतीत से वर्तमान में आ गयी और अपने कमरे से बहार निकलती हुई बोली आई मम्मी जी।  क्या बात है नेहा आज खाना नहीं बनाना, रोहन ऑफिस से आने ही वाला होगा। तबीयत तो ठीक है ना।  मैंने घड़ी की तरफ देखा तो 7 बज गए थे। मैं जल्दी से किचन में गयी और रात के खाने की तैयारी में लग गयी।  काम ख़त्म करते करते रात के 9 बज गए थे, जब मैं कमरे में आयी तो रीवा मेरी बेटी खेल रही थी और रोहन भी पास ही लेटे थे अपने मोबाइल में व्यस्त थे। मुझे देखते ही रीवा ने खुश होकर दोनों हाथ मेरी तरफ उठा दिए और मैंने उससे प्यार से गोद में उठा लिया। कुछ देर मेरे साथ खेलने के बाद रीवा सो गयी, तब तक रोहन भी सो चुके थे इसलिए मैंने भी लाइट बंद की और रीवा के पास लेट गयी। 

रात के 10:30 हो चुके थे, घर में सब सो चुके थे लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। लेटे लेटे मैं फिर से अपने अतीत में पहुँच गयी थी। 12 साल बीत गए इस बात को, मैं उस समय 22 वर्ष की रही होंगी।  एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करती थी, मुझे ज्वाइन किये कुछ हो समय हुआ था। मैं अपनी जॉब से बहुत खुश थी, मेरे सहकर्मी भी बहुत अच्छे थे काम सीखने में उन्होंने मेरा पूरा सहयोग किया। एक दिन हमारी टीम में एक नए एम्पलॉई ने ज्वाइन किया, प्रिया नाम था उसका।  देखने में ठीक ही थी मेरी ही उम्र की होगी, एक नार्मल सा परिचय हुआ और फिर सब अपने काम में लग गए। मैं जल्दी ही किसी से दोस्ती नहीं करती इसलिए मेरी उस से ज्यादा बातचीत नहीं होती थी। 

प्रिया को ऑफिस में लगभग 4 महीने हो चुके थे लेकिन अभी भी मेरी उस से ज्यादा बात नहीं होती थी।  एक दिन की बात है ऑफिस में कुछ ज्यादा काम की वजह से कुछ लोगो को थोड़ी देर एक्स्ट्रा रुकने के लिए कहा गया। मैं अपने दोस्त राजीव के साथ काम क लिए रुक गयी।  राजीव इस ऑफिस में ही मुझे मिला था और मेरा एक अच्छा दोस्त बन गया था।  वह मेरे ही घर के पास रहता था तो हमारा साथ आना जाना भी था।  ऑफिस में हम लगभग 8 से 10 लोग रुके हुए थे जिसमें प्रिया भी थी। शाम के 7 बजे तक हम लोगो का काम खत्म हो चुका था तो हम हंसी मज़ाक करने लगे।  राजीव कुछ मज़ाकियाँ मिज़ाज का था इसलिए मज़ाक का माहौल जल्द ही बन गया।  उस ने प्रिया को भी हमारे ग्रुप में शामिल होने का कहा था वो भी मुस्कुरा कर हमारे साथ आ कर बैठ गयी।  हम सब अपनी रिफ्रेशमेंट का इंतज़ार कर रहे थे इसलिए सकबो टाइम पास करना था।  घड़ी में 8 बज गए थे तो सबने लॉगआउट किया और अपने घर जाने के लिए ऑफिस से निकल गए।  मैं भी अपनी स्कूटी पर घर के लिए निकल गयी।  स्कूटी राजीव ड्राइव कर रहा था, उसने देखा प्रिया ऑफिस के गेट के पास खड़ी है।  राजीव ने स्कूटी प्रिया के पास रोक दी और बस स्टैंड तक लिफ्ट के लिए पूछा तो प्रिया ने हाँ कर दी।  हमने उसे भी स्कूटी पर बिठा लिया और ऑफिस से निकल गए।  

जब हम बस स्टैंड पर पहुंचे तो हमने देखा की वहाँ पर कुछ लोग दारू के नशे में खड़े है, तो हमने प्रिया को वहाँ अकेले छोड़ना सही नहीं समझा और उसे उसके घर के पास ड्राप करने के लिए चल दिए। हांलाकि उसके घर का रूट हमारे घर से अलग था और मुझे घर के लिए लेट भी हो रहा था। इसलिए मैंने राजीव को इशारे में मना भी किया, परन्तु उसने मुझे प्रिया को घर तक ड्राप करने के लिए राज़ी कर लिया। 30 मिनट बाद हमने उसे उस के घर के पास ड्राप कर दिया और अपने घर की तरफ चल दिए। 

उस दिन के बाद ही हम लोगो की दोस्ती बढ़ गयी और जल्द ही हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए।  अक्सर मैं और प्रिया एक साथ रहते मुझे उस के साथ रहना अच्छा लगता था।  कुछ ही समय बीता हम लोगो की दोस्ती हुए परन्तु ऐसा लगता था जैसे हम बहुत समय से एक दूसरे को जानते है। लेकिन कुछ समय बाद मुझे उसके व्यवहार में कुछ बदलाव सा लगने लगा। वो मुझ से कुछ अलग सा बर्ताव करने लगी।  हम जब भी बहार जाते वो मेरा हाथ पकड़ कर रहती, अगर हम कही बैठते तो वो मेरे बहुत नजदीक आ कर बैठती थी। यहाँ तक की जब हम स्कूटी पर उसे उसके घर ड्राप करने जाते तब भी वो मुझे पीछे से कसके पकड़ लेती।  मुझे ये सब अजीब लगता था लेकिन मैंने इसपर ज्यादा नहीं सोचा। 

धीरे - धीरे यूँ ही समय बीतता गया लेकिन उसका बर्ताव और ज्यादा अजीब सा हो रहा था, वो रात में मुझ से बहुत देर तक बात करती, बात करते करते बीच बीच में कभी मुझे सोना कहती तो कभी बाबू और जब फ़ोन रखना होता था तो हमेशा आई लव यू बोलती थी। मै भी मज़े में उससे लव यू टू रिप्लाई कर देती। एक दिन की बात है मुझे कैंटीन जाना था तो मेरी दूसरी फ्रेंड ने मुझे कॉफ़ी पिने को चलने को बोला और मैं उसके साथ कॉफ़ी पीने कैंटीन चली गयी।  मेरे लिए ये एक नार्मल सी बात थी, जैसे ही मैं सीट पर वापस आई उसने मुझसे फ़ोन कर के पूछा की मैं कहा गयी थी तो मैंने बता दिया की रितु के साथ कॉफ़ी पीने जिसपर वो बहुत नाराज़ हुई और मेरे साथ थोड़ी बहस हो गयी।  मुझे बहुत अजीब लग रहा था और गुस्सा भी आ रहा था।  मैंने फ़ोन रख दिया और अपने काम में लग गयी। 

उस के बाद वो शाम को मेरे पास आयी और मुझ को सॉरी बोलने लगी।  उसने कहा की वो मुझे लेकर बहुत Possessive है, जिसपर मैंने उसे बोला की मैं उसकी गर्लफ्रेंड नहीं हूँ और अगर होती भी तो मुझे किससे बात करनी है किससे नहीं करनी है उसके लिए उससे permision लेने की जरुरत नहीं है।  उसने बात वही ख़तम करने के लिए कहा और सॉरी बोलते हुए बोली की आगे से ऐसा नहीं होगा।  

एक दिन अचानक राजीव ने बताया की वह लगभग 15 दिन की छुट्टी लेकर अपने hometown जा रहा है, कोई फैमिली प्रॉब्लम की वजह से अचानक जाना पड़ रहा है, आज शाम की ट्रैन है।  वो अपने होमटाउन चला गया। अब सुबह मैं अकेले आती थी और शाम को प्रिया के साथ। एक दिन प्रिया ने मुझे अपने घर पर चलने के लिए कहा और मैंने ज्यादा न सोचते हुए हाँ कर दी। हम दोनों ऑफिस से 2 घंटे जल्दी निकल गए और उसके घर चल दिए, रस्ते में ट्रैफिक काम होने से हम जल्दी ही उसके घर पहुंच गए।  घर पर उसकी मम्मी और छोटी बहन थे, उसकी मम्मी हम दोनों के लिए कोल्ड ड्रिंक और चिप्स ले कर आयी और हम लोग बैठ कर बाते करने लग गए। 

शाम के 5 बजने वाले थे तो उसकी छोटी बहन टूशन के लिए चली गयी और मम्मी उसे छोड़ने चली गयी यह कह के की कुछ और काम भी है तो वो वापस भी उसकी बहन के साथ ही आएगी। अब घर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं था।  उसने मुझे बेड की तरफ इशारा करते हुए बोला की आराम से लेट लो, लेट के बात करते है और मैं सोफे से उठ कर बेड पर जाकर लेट गयी।  बातें करते करते वो मेरे पास आकर लेट गयी और मेरे हाथ को सहलाने लगी, फिर उस ने मुझे जोर से लगे लगा लिया।  मैं इतने समझ पाती की क्या हो रहा है वो मुझे पागलो की तरह चूमने लगी।  मै अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी। मैंने पूरी ताकत से उसे पीछे की तरफ धक्का दिया और बेड से उठ कर खड़ी हो गयी।  वो फिर से मेरे पास आ गयी और मुझ से कहने लगी की वो मुझे बहुत प्यार करती है और मेरे साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहती है। मुझे बहुत हैरानी हो रही थी और गुस्सा भी आ रहा था। 

मैंने अपना गुस्सा शांत करते हुए उसे समझाया की मैं उस के टाइप की नहीं हूँ, मुझे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसने कहा की तुम्हरा कोई बॉयफ्रेंड भी तो नहीं है, मैंने उसे समझाया की इसका मतलब यह नहीं है की मुझे लड़कियां पसंद हो।  लेकिन वो थी की कुछ समझने के लिए तैयार ही नहीं थी। मुझे लग रहा था की मैं अजीब से मुसीबत में फंस गयी हूँ, दिमाग में कुछ सूझ ही नहीं रहा था की मैं यहाँ से कैसे निकलू। मैं पूरी कोशिश कर रही थी की मैं उससे दूर रहू लेकिन वो बार बार मेरे पास आ जाती। उस घर में मेरा दम घुट रहा था। मैं जैसे तैसे उसे बातों में उलझा रही थी जिससे टाइम बीते और उसकी मम्मी और बहन वापस आ जाये और मैं यहाँ से निकल पाऊ।

उसने एक बार फिर मुझे पकड़ कर चूमने की कोशिश की लेकिन तभी डोर बेल बजी, और मेरी साँस में साँस आयी। प्रिया दरवाजा खोलने चली गयी और मैंने जल्दी से अपना बैग उठाया और बैडरूम से ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गयी। जैसे ही उसकी मम्मी अंदर आयी तो मैं उठ कर बोली की ठीक है मैं अब चलती हूँ आंटी। आंटी ने बोला थोड़ी देर रुक जाये चाय पी कर चले जाना लेकिन मैंने कहा आंटी फिर कभी आउंगी तब पी लूंगी। और ऐसा बोल कर प्रिया को बाय कर के बाहर की तरफ चल दी, प्रिया भी मेरे पीछे पीछे गेट के बाहर आ गयी।  वो कुछ बोलना चाहती थी लेकिन मैं कुछ सुनना नहीं चाहती थी, जल्दी से स्कूटी स्टार्ट की और अपने घर की तरफ चल दी। 

उसने रात में बहुत बार फ़ोन किया लेकिन मैंने फ़ोन silent पर करके एक तरफ रख दिया। रात को मैं इसकी बारे में सोचती रही, ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ था। तब समझ गया कि केवल लड़को से ही नहीं लड़कियों से भी सोच समझ कर दोस्ती करनी चाहिए। अगले दिन सुबह मैं अकेले ही ऑफिस चली गयी प्रिया ने मुझे फ़ोन भी किया लेकिन मैंने जवाब नहीं दिया। उस दिन प्रिया ऑफिस आने में लेट हो गयी थी इसलिए आते ही अपनी सीट पर काम करने बैठ गयी। मैंने लंच में भी उस से कोई बात नहीं कि और शाम को उसको साथ लिए बिना ही निकल गयी। वो मुझ से बात करने कि कोशिश कर रही थी लेकिन मैं उस से कोई बात नहीं करना चाहती थी।  कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, राजीव भी वापस आ गया था।  उसने मुझ से प्रिया से बात ना करने का कारण पूछा तो मैंने टाल दिया। 

प्रिया राजीव के द्वारा मुझ से बात करना चाह रही थी लेकिन मैं फिर किसी मुसीबत में नहीं फसंना चाहती थी। राजीव ने मुझ से बार बार पूछा तो एक दिन मैंने उसे सब बता दिया। पहले तो उसने इस बात को लेकर बहुत मज़ाक बनाया लेकिन मेरे नाराज़ होने पर वो चुप हो गया। और मेरा समर्थन करते हुए बोला कि उससे बात ना करना ही सही है। लगभग 2 महीने बाद मुझे पता चला कि वो ऑफिस से रिजाइन कर के जा रही है। मुझे इस बात कि ख़ुशी थी कि अब मुझे उसकी शक्ल भी नहीं देखनी पड़ेगी। उस से मेरा पीछा हमेशा के लिए छूट जायेगा।  

सोचते सोचते मैं कब सो गयी मुझे पता ही नहीं चला और सुबह मेरी आँख ही नहीं खुली। रोहन ने मुझे पुकारा तो मैं जल्दी से उठ बैठी देखा तो सुबह के 7 बज गए थे।  रोहन चाय बनाकर ले आये थे, पूछा क्या बात है तबियत सही नहीं है क्या, आज बहुत देर तक सो रही हो।  मैंने मुस्कुराते हुई चाय पकड़ी और बोली तबियत तो सही है पर सोचा आज संडे मैं भी एन्जॉय कर लूँ। रोहन भी हॅसने लगे और हम दोनों बैठ कर चाय पीने लगे।  

Friday, January 6, 2012

दोस्ती या प्यार

प्यार एक ऐसी पहेली है जिसे हल करना मुश्किल होता है, और बात अगर अपने सबसे प्यारे दोस्त से प्यार हो जाने की हो तो ये दोधारी तलवार पर चलने जितनी खतरनाक हो जाती है | मेरी ये कहानी कुछ ऐसी ही प्यार और दोस्ती की कशमकश पर टिकी है |
राज और शालू दोनों एक ही शहर में रह रहे थे | दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे | दोनों पहली बार आफिस में ही मिले थे और कुछ दिनों में ही एक दूजे के अच्छे दोस्त बन गए | घर से आफिस साथ आना जाना, घूमने- फिरने हर जगह दोनों साथ दीखते थे | कुछ लोगों को इनकी दोस्ती पसंद नहीं थी, इसलिए उनको लेकर गलत बातें बी कही जाने लगी, लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं था | उसी बीच राज की शादी हो गई | लेकिन शालू और राज की दोस्ती वक्त के साथ-साथ और भी मजबूत होती गई | कुछ दिनों के बाद राज का ट्रान्सफर दूसरी कंपनी में हो गया और शालू की जिंदगी में भी एक नया शक्श आ चुका था | दोनों ही अपनी जिंदगी में मशगूल हो गए थे | वैसे तो राज दिखने में ठीक ही था, लेकिन शालू सांवली- सलोनी और सुंदर थी | शालू जिस लड़के से प्यार करती थी उसे कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं कर सकी | जब तक राज उसके साथ था, उसने उससे भी छुपा रखा था कि वो किससे प्यार करती है ?

Friday, April 2, 2010

जिंदगी

जिंदगी सच में कितनी अजीब होती है, हमें पता ही नहीं चलता की हमारी जिन्दगी किस समय कौन सा रूप लेगी। बस हम सभी रोज़ अपनी अपनी जिन्दगी जीते चले जाते है बिना ये सोचे की हमारी जिंदगी का आगे क्या होने वाला है। हमारी जिंदगी हमारे लिए रोज़ नयी चुनोतियाँ हमारे सामने रखती है और हम उन चुनोतियों को स्वीकार करते करते कितने बदल जाते है हमे पता ही नहीं चलता। और जब हम अपने भूतकाल के बारे में सोचते है तब हमे ख्याल आता है की हम कितने बदल गए है। जब भी मैं अपने बीते हुए कल के बारे में सोचती हूँ तो मुझे हमेशा मन्ना दे का आनंद फिल्म का गाना याद आ जाता है।
जिंदगी ................ कैसी है पहेली, हाय
कभी तो हसाए, कभी ये रुलाये
जिंदगी ........................

सच बिलकुल सही है ये गाना, कभी एक छोटी सी ख़ुशी मिलने पर ही हम जिंदगी से इतना खुश हो जाते है कि लगता है कि जिंदगी ने हमें सब कुछ दे दिया, और कभी कभी जब हम तकलीफ में होते है तो लगता है कि हम क्यों अपनी जिंदगी जीते चले जा रहे है। हमारी जिन्दगी तब से शुरू होती है जब हम पैदा होते है, तब तो हमे जिन्दगी का मतलब भी नहीं पता होता उसके बाद हमरा बचपन जिस में कई शरारते होती है और उन शरारतों को करते करते हम कब बड़े हो जाते है पता ही नहीं चलता।

जब हम छोटे होते है तो हमे लगता है की हम कब इतने बड़े होंगे की हम भी अकेले बहार जायेगे। हम भी किसी ऑफिस में काम करेगें और पैसे कमाएंगे, तब ये सोच कर बहुत अच्छा लगता है की हम भी काम करके मम्मी पापा जैसे पैसे कम कर लायेंगें और जो पसंद होगा वो ही खरीदेंगे। और सच जब हम अपनी पदाई पूरी कर के नौकरी करना सुरु करते है तो हर तरफ एक अलग सी खुसी नज़र आती है और पहली नौकरी की पहली तनख्वा लेना तो सच में मन में एक अलग ही कुशी पैदा करती है। पहली तनख्वा मिलने पर ऐसा लगता है जैसे ना जाने हमे क्या मिल गया हो। जो तमन्ना बरसो से थी वो आज पूरी हो गयी। हाथ में पैसे पकड़ते हुए जो दिल में ख़ुशी हो रही होती है उसे बयां नहीं किया जा सकता ।

वो ख़ुशी मिलने के बाद अब हमारी खुशियाँ कुछ और पाने में हो जाती है| ना जाने कब और कैसे कोई हमें इतना प्यारा हो जाता है की हमें उस के अलवा कोई और नज़र ही नहीं आता|और ऐसा ही मेरे साथ हुआ अभी मुझे ऑफिस में आये जयादा दिन भी नहीं हुए थे की मैंने साहिल को काम करते हुए देखा| ना जाने क्यों उसे देख कर ऐसा लगा कि काश वो मुझे जानता होता और मैं उस से बात कर पाती| अभी मुझे इस ऑफिस में आये 1 महीना ही हुए थे कि मुझे पता चला कि जिस टीम का इंचार्ज साहिल है उस टीम से हमारा भी co-ordination है |यह जान कर मुझे ख़ुशी तो हुई लेकिन इस से भी मुझे उस से बात करने का मौका तो नहीं मिलेगा इस लिए बस अपने मन को समझाने के अलवा कोई और रास्ता नहीं था|कभी कभी मुझे ऐसा लगता कि शायद ये कुछ दिनों के लिए है थोड़े दिनों में सब नोर्मल हो जायेगा मतलब मैं उस कि और कुछ समय के लिए ही आकर्षित हुई हूँ |यही सोचते और आपने मन को समझाते हुए समय बीत रहा था | एक दिन हमे पता चला कि हम सब कि सीट बदल रही है और साहिल कि टीम हमारी टीम के ठीक सामने बैठेगी| और जल्दी ही ऐसा हो गया और साहिल कि सीट लगभग मेरे सामने ही थी जिस वजह से वो मुझे हमेशा दिखाई देता था| सीट सामने होते हुए भी मेरी उस से बात तो नहीं हो पाती थी परन्तु उससे चुपके से देखने का मौका तो मिल ही जाता था| अभी मुझे ६ महीने ही हुए थे कि हमारी टीम के इंचार्ज को दूसरी टीम में शिफ्ट कर दिया और मेरे काम को देखते हुए मुझे सारी जिमेदारी दे दी गयी| नई जिम्मेदारी मिलते ही मेरा पूरा ध्यान मेरे काम पर चला गया और कुछ समय क लिए मेरे दिमाग से साहिल का ख्याल निकल गया| लगभग एक महीने बाद मुझे मेरी टीम का इंचार्ज बना दिया गया |और उसी समय मेरी टीम और काम में इतने बदलाव आये कि मेरा पूरा ध्यान उसे सुधारने पर ही लग गया और लगभग ३ महीने कि मेहनत के बाद मुझे ऐसा लगा कि शायद अब मेरे पास थोडा साँस लेने का टाइम है|

इन ६ महीनो में ऐसा नहीं था कि मैं उसे भूल गई थी पर हाँ मैंने कोशिश जरूर की। लेकिन मेरे लिए उसे भूलना आसान नहीं था। धीरे -धीरे समय  बीतता गया लेकिन मेरे दिमाग से साहिल का ख्याल जाता ही नहीं था। लगभग १ साल बीत चुका था मुझे इस ऑफिस में आये लेकिन मैं साहिल से कभी अपने दिल की बात कह ही नहीं पाई।

Tuesday, March 16, 2010

इब्न बतूता का जूता

इब्न बतूता पहन के जूता, निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गयी, थोड़ी घुस गई कान में
कभी नाक को, कभी कान को मलते इब्न बतूता
इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैर का जूता
उड़ते - उड़ते जूता उनका जा पंहुचा जापान में
इब्न बतूता खड़े रह गए मोची की दुकान में

Sunday, February 7, 2010

जिंदगी के अफ़साने

जिंदगी बिना प्यार के अधूरी क्यों लगती है ? हर पल किसी अपने का इंतज़ार ये दिल क्यों करता रहता है ? मुझे ही नहीं, हम सभी को अपने उस दोस्त का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता है जो सारे दोस्तों में सबसे ख़ास होता है | जिसके आते ही हमारे चेहरे पर एक ऐसी ख़ुशी छा जाती है जिसका एहसास उन दोनों को हो जाता है| मुझे भी आजकल कुछ ऐसा ही होने लगा है,ये दिल हर पल सिर्फ उसके ही ख्यालों में खोया रहता है | हर घड़ी सिर्फ उसकी ही बातें हमारे दिल को बेचैन किये रहती है | मुझे नहीं पता की वो मुझे प्यार करती भी है नहीं, लेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है की मुझे उससे प्यार हो गया है और अगर ऐसा नहीं है तो शायद बहुत जल्दी ही ..................

Monday, January 18, 2010

हिन्दी की कॉपी

हाई स्कूल की कापियां जाँची जा रही थी इलाहाबाद के राजकीय इंटर कालेज में और सभी अपने अपने कम में ब्यस्त थे की अचानक अब्दुल मियाँ (हिंदी के टीचर) की चीखने की आवाज़ आई -
लाहौल बिला कुवत ! क्या वाहियात शक्श है जिसने ये कॉपी लिखी है , अल्ला कसम क्या फ़िल्मी शक्शियत है ?
इतने में पंडित राम शंकर जी बोल पड़े - अमां बड़े मियाँ क्यों खामखाँ फडफदाये जा रहे हो? अमां बच्चे ने ऐसा क्या लिख दिया जो पाजामें से बाहर उछल पड़ रहे हो | क्या भाभी जान ने सुबह सुबह ही बेलन बजा डाला है जो उस बेचारे पर लट्ठ लेकर पिल पड़े हो |
अमे पंडित मियाँ ! अबे तुम क्या जानो इस फ़िल्मी शक्श की कारगुजारियां | अल्लाह बचाए ऐसे बच्चो से | अब्दुल मियाँ ने अपने गुस्से का इज़हार किया |
तभी इत्तफाक से सिंह साहब आ गए | उन्हें इस हंगामे की कोई खबर नहीं थी क्यों कि वो बहार चाय समोसे का आर्डर करने गए थे | आते ही उन्होंने सब को अब्दुला सर के पास खड़े देखा तो लपक कर उनके पास खड़े हो गए और कुछ बोलते इससे पहले ही अब्दुल सर ने अपना मुह खोला और तोप के गोले कि तरह शब्द के गोले दागने लगे | आइये जनाब ! वहीँ क्यों रुक गए | हमारे सिर पर काफी जगह खाली है सीधे उसी पर चढ़ जाते | यहाँ मुह के पास आकर क्यों रुक गए | खुदा झूठ न बुलवाए,तुमलोग बेवजह ही हमारे सिर पर क्यों चढ़े जा रहे हो | अबे हमें कुछ हुआ नहीं है , लेकिन तुम लोग तो हद ही कर दिए हो
सिंह साहब अब्दुल सर के बहुत करीबी दोस्तों में से थे

Sunday, January 17, 2010

तेरे लिए

कहाँ छुपे हो तुम, मेरे पहलु में आ जाओ
दिल में बस गए हो तुम, मेरी बाँहों में आ जाओ || 
पहचानतें हैं हम आपकी हर धड़कने, खामोशियों को कोई नाम न दो
साँसों में बस गए हैं वो इस कदर, हमसे बिछुड़ने का नाम न लो || 
क्यों करते हैं तुमसे मिलने का इंतज़ार, 
क्यों करते हैं हम तुमसे इतना प्यार ||
क्यों हो जाती हैं तेज़ धड़कने,जब तुम आ जाते हो 
क्यों हो जाते हैं हम बेचैन, जब तुम चले जाते हो || 
जीवन की इस डगर पर हम कर रहे हैं इंतजार तेरा, जाने कब आयेगा वो खुबसूरत सबेरा 
जब तुम होंगी हमारी बाहों के घेरे में और तुम्हारे लरजते होंठो पे नाम हो मेरा || 
तुम्हारे होंठो की तपिश से मैं भीग जाउंगा 
तुम्हारे धडकते सीने में मैं गीत मिलन के गाऊँगा || 
तेरे लिए ये मिलन का एक अरमान बन जाएगा 
तेरा मिलना मेरे लिए जीने का वरदान बन जाएगा ||

Monday, January 11, 2010

प्यार माँगा था

दोस्तों मेरी कहानी की शुरुआत होती है मेरी इंटर कालेज की पढाई के साथ मैं जिस लड़की से प्यार करता था वोमुझे प्यार करती थी या नही, ये मुझे नही पता लेकिन मै उसे बहुत प्यार करता था हम दोनों साथ - साथ स्कूलजाते थे और हमारी दोस्ती भी बहुत अच्छी थी मै सोचता था की सबकी गर्ल फ्रेंड्स हैं जिनके साथ वो घूमते फिरते हैं मै थोडा लड़कियों से डरता भी था इसलिए किसी से कभी कुछ कहने की हिम्मत नही होती थी, लेकिन दोस्तों के लिए मै उनकी बात हमेशा उनकी प्रेमिकाओं तक पंहुचा दिया करता था मै अनु (मेरी दोस्त) को अपने प्यार के बारे में बताने की कोशिश भी करता था लेकिन फिर ये सोचता था की अगर वो मेरे प्यार को नही महसूस कर पा रही है या समझना ही नही चाह रही है तो मै भी इसे ताउम्र प्यार करता रहूँगा लेकिन कभी इज़हार नही करूंगाऔर धीरे धीरे हमारा कालेज भी ख़तम हो गया और हम दोनों ही जॉब करने लगे हमारी दोस्ती वैसी ही चल रही थी कि अचानक एक दिन मै उसके घर चला गया और सीधे उसके भैया के सामने जाकर खडा हो गया अनु ने नीचे ही पुछ लिया था कि भैया से क्या काम है? लेकिन मै बोला नही
आप लोगों को बता दूँ की भैया से मेरी अच्छी पटती है इसलिए मैंने सीधे भैया से ही बात करना ठीक समझा मेरे घर में मैंने मेरी बड़ी बहन और छोटी बहन को बता रखा था,मम्मी को तो उसी दिन बता दिया था जब मैं उसे पहली बार अपने कालेज में देखा था
लगभग एक माह बीत गए और मैंने उसे बात तक नहीं की थी मेरे दोस्तों को मैंने बता दिया था की मैं उसे पसंद करता हूँ और कोई उसे प्यार करने के बारे में न सोचे,लेकिन उसे ही कुछ नहीं कह सका था यहाँ तक की उसका नाम भी नहीं पूछ सका था लेकिन सर की मेहरबानी से मुझे उसका नाम पता चल गया था एक दिन घर पर कोई त्यौहार था और मम्मी ने सभी पड़ोसियों को बुलाया था हम लोगों को यहाँ आये लगभग एक माह हो गए थे और शाम को जब मैंने अपने ही घर में अनु को देखा तो मेरे दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गई थी, मुझे ऐसा लगा की "किसी ने फूलों के बगीचे में मुझे परियों के बीच पहुंचा दिया है "
मेरे तो होशो हवास गूम हो गए थे मै सिर्फ अनु को ही देख रहा था और फिर जा कर अपनी बड़ी दी (रंजना दी ) को बता दिया और ये भी बता दिया की हम एक साथ पढ़ते है बस क्लास अलग अलग हैं
फिर दीदी ने अनु को बुलाया तो वो मुझे देख कर चौक गई और बोली "तुम तो मेरे की स्कूल में पढ़ते हो न ,यहाँ क्या कर रहे हो?" तब भी दीदी ने ही बताया की ये मेरा भाई है और उस दिन से मेरी उसकी बात शुरू हुई थी उसी समय दीदी की कुछ सहेलियों ने अंताछरी खेलने को बोला और खेल शुरू हो गया वैसे तो मै बहुत शरारती था जिस वजह से दीदी की सभी सहेलियों का चहेता भाई था,लेकिन आज मुझे क्या हो गया था ? न तो मैंने कोई शरारत ही की थी और न ही कोई गाना गाया गया था तभी अनु की बारी आई और उसने (DDLJ) का वो गाना "हो गया है तुझको तो प्यार सजना "गाया तो लगा दिल के सारे तंतु एक साथ बज उठे हों मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना न था मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपने प्यार का इज़हार ही कर दिया हो वो एहसास जिंदगी भर नहीं भुला जा सकता है फिर हमारी दोस्ती हो गई और मै उसके भैया के साथ क्रिकेट खेला करता था तो उनके साथ अच्छी बनने लगी थी जिंदगी अपनी रफ़्तार से चल रही थी और मै थोड़ा पीछे अपने प्यार के मामले में |
फिर आज का दिन और मै भैया के सामने था
मै - भैया मुझे आपसे बात करनी है
भैया - हाँ बरखुरदार ! आज हमारी याद कैसे आ गई |कई दिनों से तुम खेलने भी नहीं आ रहे हो ? तबियत तो ठीक है ना ?
मैं -हाँ भैया ! तबियत ठीक है लेकिन मैं थोड़ी दुविधा में था इसलिए मैं खेलने भी नहीं आ रहा था | भैया मुझे शादी करनी है, दीदी की शादी हो गई, आपकी और तनु दी की भी शादी हो गई लेकिन हमारे बारे में कोई नहीं सोच रहा है
भैया - ओ हो ! चलो ठीक है लेकिन ये तो बताओ की लड़की कौन है और करती क्या है ? कहाँ रहती है ? दिखती कैसी है ? क्या किसी को पसंद किया है या यूँ ही खयाली पुलाव पका रहे हो ?
मैं- पसंद तो करता हूँ लेकिन ये नहीं जनता की वो भी मुझे पसंद करती है या नहीं? हाँ मैंने कभी उसे कुछ कहा नहीं है लेकिन हमारी बहुत अच्छी दोस्ती है |
भैया- और बताओ तुम्हारी जॉब कैसी चल रही है? अब क्या कर रहे हो ? तुम और अनु तो एक ही ऑफिस में थे न |
हाँ भैया ! लेकिन मैंने जॉब बदल दी है और हो सकता है की रेलवे में भी हो जाये| मैंने जबाब दिया
भैया - ये तो बहुत अच्छी बात है | अब बताओ लड़की कौन है ?
मैं - भैया ! मैं अपनी बहनों से बहुत प्यार करता हूँ और छोटी के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूँ |
भैया - ये तो बहुत अच्छी बात है तुम तो बहुत समझदार हो गए हो विशाल
ये सुनकर मैंने मन ही मन ये सोचने लगा की अभी जब मै इनके सर पर बम फोडूगा तब अचानक ही मै समझदार से बेवकूफ और न जाने क्या क्या बन जाउंगा )
मैं - भैया मैं आपकी बहन से भी बहुत प्यार करता हूँ |
भैया - करना ही चाहिए | जैसे तुम्हारी बहन है वैसे वो भी तो है |
मै - नहीं भैया ! मेरा मतलब है की मै उस से ही शादी करना चाहता हूँ |
भैया - ये क्या बोल रहा है साले ? अबे तू समझ रहा है इसका क्या मतलब होता है ? और क्या अनु को पता है? अनु ! ओ अनु इधर आ |
अनु - हाँ भैया !
ये विशाल क्या बोल रहा है ? भैया ने गुस्से से कहा
मुझे क्या पता क्या बोल रहा है ? विशाल क्या बोल रहे हो ?अनु मुझसे बोली
मैंने उससे ही बोल दिया की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ और अगर उसे मैं पसंद नहीं हूँ तो वो मना भी कर सकती है | ये सुन कर तो उसकी हालत देखने लायक थी, मेरी समझ में नहीं आ रहा था की वो खुश हुई या नाराज़ लेकिन मेरी हालत एक अच्छे दोस्त को खोने के ख्याल से ही बिगड़ चुकी थी और मैं शायद गिर ही जाता की अनु के हाथों ने मुझे सहारा दिया और धीरे धीरे मुझे नीचे लेकर आई |वहां मेरी माँ - पिता जी, दीदी -जीजा और मेरी छोटी बहन गुड़िया भी थी, मै सीधे दी के पास जा के बैठ गया और सब के आने का कारण पूछा तो कहने लगी की "तूने गुड़िया से कुछ कहा था न,बस उसी वजह से हम यहाँ आये हैं"| तब जाके मेरी समझ में आया की सबने मिलकर मुझे "मामू " बनाया था यहाँ तक की अनु के भैया और इस अनु की बच्ची ने भी |और फिर हमें पता चला की मेरी दोनों बहने मुझसे छुप छुप कर अनु को भाभी ही बुलाती थी लेकिन वो सिर्फ मेरे प्यार के इज़हार का इंतज़ार कर रही थी | मैंने फिर पूछा की "अगर तुम भी मुझे प्यार करती थी तो क्या तुम नहीं बता सकती थी " और फिर हमारी शादी की तैयारियां चलने लगी थी | आज मैं दूल्हा बन रहा था और तैयार होने के लिए मुझे नहलाने के लिए उठाया जा रहा था जब मेरे चेहरे पर पानी गिरा और आँख खुली तो सारा सपना पल भर में चकना चूर हो गया | और मैं बदहवास सा बैठा ही रह गया | एक पल में ही सारी खुशियाँ ख़तम हो चुकी थी और मैं जिंदगी भर अपने प्यार का इज़हार नहीं कर सका था | सपने में ही सही लेकिन मैंने जो प्यार मांगा था वो मिल गया," लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है ?"
=============== @@@@============@@@@===========

उम्मीद

हमारी आँखों में भी मोहब्बत का सितारा होगा 
एक दिन आएगा कि वो शक्स हमारा होगा || 
जिसे हम चाहते हैं दिल की गहराईयो से 
कभी तो वो दिलबर हमारा होगा || 
जिसको हम सोचते रहते हैं रात की तनहाइयों में 
कभी तो उसके लबों पे नाम हमारा होगा || 
मुस्कुराने की वजह हमेशा ख़ुशी नहीं होती 
वो भी तो मेरी तरह मोहब्बत का सताया होगा || 
अचानक से बढ़ने लगी हैं मेरे दिल की धड़कने 
शायद उसकी धडकनों ने मेरा नाम हौले से गुनगुनाया होगा || 
तू मिल गई जिंदगी संवर गई 
मेरी किस्मत को तूने अपने हाथों से सजाया होगा ||