गंगापुर, औरंगाबाद के पास स्थित एक छोटा सा क़स्बा है जहाँ रमेश अपने परिवार के साथ रहता था। परिवार में रमेश के अलावा उसकी पत्नी, दो बच्चे, रमेश की माँ और एक छोटी बहन रहते थे। पिता की मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी उसी के ऊपर आ गयी थी। भरापूरा परिवार था, लेकिन आमंदनी कम थी। किसी तरह वह घर का खर्चा चला पाता था। अभी उसे बहन की शादी भी करनी थी जिसके लिए उसे पैसे जोड़ने थे। रमेश रात दिन परेशान रहता था और हमेशा चिड़चिड़ा रहता था जिस वजह से घर में हमेशा कलेश ही होता था। रमेश को समझ नहीं आ रहा था कि वो पैसो का इंतेज़ाम कैसे करे।
रमेश हमेशा ही अपनी किस्मत को कोसता रहता। और हमेशा भगवान से शिकायत करता रहता कि उसने उसे अमीर क्यों नहीं बनाया। भगवान ने उसको इतनी ख़राब किस्मत क्यों दी है। रमेश भगवान से पूछता की उसके जीवन में सुख, शांति, ख़ुशी कब आएगी, क्या वो कभी चिंतामुक्त जीवन व्यतीत कर पायेगा। यही सब सोच कर रमेश अक्सर परेशान रहता। काम से घर लौटने के बाद भी वो अपने ही खयालो में खोया रहता था। जिसके कारण वह बच्चो पर भी ध्यान नहीं देता था और ना ही अपनी पत्नी के साथ समय बिता पाता था। उसकी इसी आदत से उसकी पत्नी भी हमेशा परेशान ही रहती। घर के कलेश से उसकी माता भी बहुत दुखी रहती थी। उन्होंने बहुत बार रमेश को समझाया भी कि वो इतनी चिंता ना करा करे, सब काम अपने समय पर हो जाते है। भगवान कोई ना कि रास्ता जरूर दिखाते है, मनुष्य को बुरे वक़्त का सामना धैर्य से करना चाहिए। तब तो रमेश हाँ में सिर हिला देता लेकिन फिर उसका वही हाल हो जाता।
रमेश की एक छोटी दूकान है जिसके सामान के लिए उसे शहर जाना पड़ता है। आज भी उसे सामान खरीदने के लिए शहर जाना है इसलिए वो सुबह जल्दी ही घर से निकल गया ताकि वह शाम तक वापस आ सके। जब वह शहर पंहुचा तो बस से उतर कर सीधा मार्किट की तरफ चल दिया । मार्केट में हर तरह की दुकाने थी, बड़ी छोटी जिन पर अलग अलग तरह का सामान मिल रहा था। तभी रमेश की नज़र एक छोटी सी दूकान पर गयी। दूकान के बोर्ड पर लिखा था "भगवान की दूकान"।
रमेश को दूकान का नाम पढ़ कर थोड़ी सी हैरानी हुई तो वह दूकान के पास गया। उसने खिड़की से अंदर की तरफ झाँका परन्तु उसे कुछ दिखाई नहीं दिया। उसने सोचा की क्यों ना अंदर जाकर देखा जाये की यह कैसी दूकान है। रमेश उस दूकान के अंदर गया तो उसने देखा, बाहर से मामूली सी दिखने वाली दूकान अंदर से बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। पूरी दूकान रोशनी से जगमगा रही थी। छत पर बड़े बड़े झूमर लटके हुए थे, सुन्दर नक्काशी वाले पिलर लगे हुए थे और दीवारों पर भी बेहतरीन सजावट थी। रमेश को यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो स्वर्ग में आ गया हो। दुकान के अंदर बड़ी ही सुन्दर सुन्दर वस्तुएं रखी थी जो रमेश ने पहले कभी नहीँ देखी थी। रमेश यह सब बड़े आश्चर्य से देख रहा था। तभी सामने से उसने एक व्यक्ति को आते हुए देखा। वह व्यक्ति रमेश के पास आया और बोला :
व्यक्ति : आपका स्वागत है, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ।
रमेश : क्या सचमुच यह भगवान की दूकान है ?
व्यक्ति : जी बिल्कुल यह भगवान की ही दूकान है।
रमेश : बाहर से तो यह बिल्कुल मामूली सी दूकान लगती है, परन्तु अंदर से बहुत ही सुन्दर दिखती है।
व्यक्ति (मुस्कुराते हुए) : हाँ भाई ये भगवान की ही दूकान है।
रमेश : यह जो आपने सुन्दर सुन्दर वस्तुएं सजाई हुई है, यह क्या है ?
व्यक्ति (हाथ से इशारा करते हुए) : यह आनंद है, दूसरी तरफ इशारा करते हुए यह शांति है, यह विवेक, वो धैर्य और वह चेतना है।
रमेश : क्या हम इन्हें खरीद भी सकते है ?
व्यक्ति : जी, आप इन्हें फ्री में ले सकते है।
रमेश (खुश होकर) : यह तो बहुत अच्छी बात है।
रमेश : क्या मैं इन्हें एक से ज्यादा भी ले सकता हूँ ?
व्यक्ति : हाँ आप इन्हें जितना चाहे उतना ले सकते है।
रमेश (कुछ सोचते हुए) : ठीक है भाई आप मेरे लिए सब वस्तुएँ 12 - 12 पैक कर दो।
व्यक्ति : आप इंतज़ार कीजिये, मैं अभी आता हूँ।
ऐसा बोल कर वह व्यक्ति अंदर चला गया और थोड़ी देर बाद बाहर आया। उसके हाथ में एक छोटा सा बॉक्स था, बॉक्स को रमेश की तरफ बढ़ाते हुए उस व्यक्ति ने रमेश से कहा :
व्यक्ति : यह लीजिये आपके 12 - 12 पीस।
रमेश (थोड़ा गुस्से में) : यह कैसे हो सकता है ? ये इतनी बड़ी बड़ी चीज़ें है, यह इतने छोटे से बॉक्स में कैसे आ सकती है।
व्यक्ति (नम्रता से) : आप जिन चीज़ों को देख रहे है, हम केवल उनके बीज देते है। जिसको भी आप ये देना चाहते है, उन्हें आप ये बीज दे दो। जब आप इन बीजों की सही से देखभाल करोंगे तो यह भी बड़े होकर ऐसे ही सुन्दर बन जायेंगे।
रमेश सब समझ गया और वह वो छोटा सा बॉक्स लेकर चला गया।
सन्देश : दोस्तों बिल्कुल इन्ही बीजों की तरह हमारे जीवन में भी आंनद, शांति, धैर्य आदि के बीज़ हमें उस बनाने वाले ने दिए है। हमें बस उसकी अच्छे से देखभाल करके अपने जीवन को आनंदमय बनाना है।