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परिचय


दोस्तों! कुछ कहानियाँ ब्लॉग में आपका स्वागत है यहाँ पर कुछ ऐसी कहानिया है जिनमें अहसाह छुपा है, कुछ ऐसी बातों का जो हम किसी से कह नहीं सकते पर कहानी में ढालकर उन्हें आपके सामने पेश कर सकते है। कुछ ऐसी ही दिल की बाते जो हम होंठों से नहीं कह पाते, पर फिर भी हम चाहते है कि हम वो अहसास दुसरो को बताये। दोस्तों ये जरुरी नहीं कि कहानिया केवल प्यार कि ही हो सकती है। हम अपनी सोच को या विचारों को भी कहानी का रूप दे सकते है। हम अपने आस पास के वातावरण में अगर कुछ बदलाव लाना चाहते है तो भी हम उसे कहानी में ढाल कर लोगो तक अपनी दिल कि बात पंहुचा सकते है। या फिर हम अपने समाज में हो रही बुराइयों को खत्म करने का प्रयास भी कहानी के जरिये कर सकते है।



Monday, January 18, 2010

हिन्दी की कॉपी

हाई स्कूल की कापियां जाँची जा रही थी इलाहाबाद के राजकीय इंटर कालेज में और सभी अपने अपने कम में ब्यस्त थे की अचानक अब्दुल मियाँ (हिंदी के टीचर) की चीखने की आवाज़ आई -
लाहौल बिला कुवत ! क्या वाहियात शक्श है जिसने ये कॉपी लिखी है , अल्ला कसम क्या फ़िल्मी शक्शियत है ?
इतने में पंडित राम शंकर जी बोल पड़े - अमां बड़े मियाँ क्यों खामखाँ फडफदाये जा रहे हो? अमां बच्चे ने ऐसा क्या लिख दिया जो पाजामें से बाहर उछल पड़ रहे हो | क्या भाभी जान ने सुबह सुबह ही बेलन बजा डाला है जो उस बेचारे पर लट्ठ लेकर पिल पड़े हो |
अमे पंडित मियाँ ! अबे तुम क्या जानो इस फ़िल्मी शक्श की कारगुजारियां | अल्लाह बचाए ऐसे बच्चो से | अब्दुल मियाँ ने अपने गुस्से का इज़हार किया |
तभी इत्तफाक से सिंह साहब आ गए | उन्हें इस हंगामे की कोई खबर नहीं थी क्यों कि वो बहार चाय समोसे का आर्डर करने गए थे | आते ही उन्होंने सब को अब्दुला सर के पास खड़े देखा तो लपक कर उनके पास खड़े हो गए और कुछ बोलते इससे पहले ही अब्दुल सर ने अपना मुह खोला और तोप के गोले कि तरह शब्द के गोले दागने लगे | आइये जनाब ! वहीँ क्यों रुक गए | हमारे सिर पर काफी जगह खाली है सीधे उसी पर चढ़ जाते | यहाँ मुह के पास आकर क्यों रुक गए | खुदा झूठ न बुलवाए,तुमलोग बेवजह ही हमारे सिर पर क्यों चढ़े जा रहे हो | अबे हमें कुछ हुआ नहीं है , लेकिन तुम लोग तो हद ही कर दिए हो
सिंह साहब अब्दुल सर के बहुत करीबी दोस्तों में से थे

Sunday, January 17, 2010

तेरे लिए

कहाँ छुपे हो तुम, मेरे पहलु में आ जाओ
दिल में बस गए हो तुम, मेरी बाँहों में आ जाओ || 
पहचानतें हैं हम आपकी हर धड़कने, खामोशियों को कोई नाम न दो
साँसों में बस गए हैं वो इस कदर, हमसे बिछुड़ने का नाम न लो || 
क्यों करते हैं तुमसे मिलने का इंतज़ार, 
क्यों करते हैं हम तुमसे इतना प्यार ||
क्यों हो जाती हैं तेज़ धड़कने,जब तुम आ जाते हो 
क्यों हो जाते हैं हम बेचैन, जब तुम चले जाते हो || 
जीवन की इस डगर पर हम कर रहे हैं इंतजार तेरा, जाने कब आयेगा वो खुबसूरत सबेरा 
जब तुम होंगी हमारी बाहों के घेरे में और तुम्हारे लरजते होंठो पे नाम हो मेरा || 
तुम्हारे होंठो की तपिश से मैं भीग जाउंगा 
तुम्हारे धडकते सीने में मैं गीत मिलन के गाऊँगा || 
तेरे लिए ये मिलन का एक अरमान बन जाएगा 
तेरा मिलना मेरे लिए जीने का वरदान बन जाएगा ||

Monday, January 11, 2010

प्यार माँगा था

दोस्तों मेरी कहानी की शुरुआत होती है मेरी इंटर कालेज की पढाई के साथ मैं जिस लड़की से प्यार करता था वोमुझे प्यार करती थी या नही, ये मुझे नही पता लेकिन मै उसे बहुत प्यार करता था हम दोनों साथ - साथ स्कूलजाते थे और हमारी दोस्ती भी बहुत अच्छी थी मै सोचता था की सबकी गर्ल फ्रेंड्स हैं जिनके साथ वो घूमते फिरते हैं मै थोडा लड़कियों से डरता भी था इसलिए किसी से कभी कुछ कहने की हिम्मत नही होती थी, लेकिन दोस्तों के लिए मै उनकी बात हमेशा उनकी प्रेमिकाओं तक पंहुचा दिया करता था मै अनु (मेरी दोस्त) को अपने प्यार के बारे में बताने की कोशिश भी करता था लेकिन फिर ये सोचता था की अगर वो मेरे प्यार को नही महसूस कर पा रही है या समझना ही नही चाह रही है तो मै भी इसे ताउम्र प्यार करता रहूँगा लेकिन कभी इज़हार नही करूंगाऔर धीरे धीरे हमारा कालेज भी ख़तम हो गया और हम दोनों ही जॉब करने लगे हमारी दोस्ती वैसी ही चल रही थी कि अचानक एक दिन मै उसके घर चला गया और सीधे उसके भैया के सामने जाकर खडा हो गया अनु ने नीचे ही पुछ लिया था कि भैया से क्या काम है? लेकिन मै बोला नही
आप लोगों को बता दूँ की भैया से मेरी अच्छी पटती है इसलिए मैंने सीधे भैया से ही बात करना ठीक समझा मेरे घर में मैंने मेरी बड़ी बहन और छोटी बहन को बता रखा था,मम्मी को तो उसी दिन बता दिया था जब मैं उसे पहली बार अपने कालेज में देखा था
लगभग एक माह बीत गए और मैंने उसे बात तक नहीं की थी मेरे दोस्तों को मैंने बता दिया था की मैं उसे पसंद करता हूँ और कोई उसे प्यार करने के बारे में न सोचे,लेकिन उसे ही कुछ नहीं कह सका था यहाँ तक की उसका नाम भी नहीं पूछ सका था लेकिन सर की मेहरबानी से मुझे उसका नाम पता चल गया था एक दिन घर पर कोई त्यौहार था और मम्मी ने सभी पड़ोसियों को बुलाया था हम लोगों को यहाँ आये लगभग एक माह हो गए थे और शाम को जब मैंने अपने ही घर में अनु को देखा तो मेरे दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गई थी, मुझे ऐसा लगा की "किसी ने फूलों के बगीचे में मुझे परियों के बीच पहुंचा दिया है "
मेरे तो होशो हवास गूम हो गए थे मै सिर्फ अनु को ही देख रहा था और फिर जा कर अपनी बड़ी दी (रंजना दी ) को बता दिया और ये भी बता दिया की हम एक साथ पढ़ते है बस क्लास अलग अलग हैं
फिर दीदी ने अनु को बुलाया तो वो मुझे देख कर चौक गई और बोली "तुम तो मेरे की स्कूल में पढ़ते हो न ,यहाँ क्या कर रहे हो?" तब भी दीदी ने ही बताया की ये मेरा भाई है और उस दिन से मेरी उसकी बात शुरू हुई थी उसी समय दीदी की कुछ सहेलियों ने अंताछरी खेलने को बोला और खेल शुरू हो गया वैसे तो मै बहुत शरारती था जिस वजह से दीदी की सभी सहेलियों का चहेता भाई था,लेकिन आज मुझे क्या हो गया था ? न तो मैंने कोई शरारत ही की थी और न ही कोई गाना गाया गया था तभी अनु की बारी आई और उसने (DDLJ) का वो गाना "हो गया है तुझको तो प्यार सजना "गाया तो लगा दिल के सारे तंतु एक साथ बज उठे हों मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना न था मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपने प्यार का इज़हार ही कर दिया हो वो एहसास जिंदगी भर नहीं भुला जा सकता है फिर हमारी दोस्ती हो गई और मै उसके भैया के साथ क्रिकेट खेला करता था तो उनके साथ अच्छी बनने लगी थी जिंदगी अपनी रफ़्तार से चल रही थी और मै थोड़ा पीछे अपने प्यार के मामले में |
फिर आज का दिन और मै भैया के सामने था
मै - भैया मुझे आपसे बात करनी है
भैया - हाँ बरखुरदार ! आज हमारी याद कैसे आ गई |कई दिनों से तुम खेलने भी नहीं आ रहे हो ? तबियत तो ठीक है ना ?
मैं -हाँ भैया ! तबियत ठीक है लेकिन मैं थोड़ी दुविधा में था इसलिए मैं खेलने भी नहीं आ रहा था | भैया मुझे शादी करनी है, दीदी की शादी हो गई, आपकी और तनु दी की भी शादी हो गई लेकिन हमारे बारे में कोई नहीं सोच रहा है
भैया - ओ हो ! चलो ठीक है लेकिन ये तो बताओ की लड़की कौन है और करती क्या है ? कहाँ रहती है ? दिखती कैसी है ? क्या किसी को पसंद किया है या यूँ ही खयाली पुलाव पका रहे हो ?
मैं- पसंद तो करता हूँ लेकिन ये नहीं जनता की वो भी मुझे पसंद करती है या नहीं? हाँ मैंने कभी उसे कुछ कहा नहीं है लेकिन हमारी बहुत अच्छी दोस्ती है |
भैया- और बताओ तुम्हारी जॉब कैसी चल रही है? अब क्या कर रहे हो ? तुम और अनु तो एक ही ऑफिस में थे न |
हाँ भैया ! लेकिन मैंने जॉब बदल दी है और हो सकता है की रेलवे में भी हो जाये| मैंने जबाब दिया
भैया - ये तो बहुत अच्छी बात है | अब बताओ लड़की कौन है ?
मैं - भैया ! मैं अपनी बहनों से बहुत प्यार करता हूँ और छोटी के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूँ |
भैया - ये तो बहुत अच्छी बात है तुम तो बहुत समझदार हो गए हो विशाल
ये सुनकर मैंने मन ही मन ये सोचने लगा की अभी जब मै इनके सर पर बम फोडूगा तब अचानक ही मै समझदार से बेवकूफ और न जाने क्या क्या बन जाउंगा )
मैं - भैया मैं आपकी बहन से भी बहुत प्यार करता हूँ |
भैया - करना ही चाहिए | जैसे तुम्हारी बहन है वैसे वो भी तो है |
मै - नहीं भैया ! मेरा मतलब है की मै उस से ही शादी करना चाहता हूँ |
भैया - ये क्या बोल रहा है साले ? अबे तू समझ रहा है इसका क्या मतलब होता है ? और क्या अनु को पता है? अनु ! ओ अनु इधर आ |
अनु - हाँ भैया !
ये विशाल क्या बोल रहा है ? भैया ने गुस्से से कहा
मुझे क्या पता क्या बोल रहा है ? विशाल क्या बोल रहे हो ?अनु मुझसे बोली
मैंने उससे ही बोल दिया की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ और अगर उसे मैं पसंद नहीं हूँ तो वो मना भी कर सकती है | ये सुन कर तो उसकी हालत देखने लायक थी, मेरी समझ में नहीं आ रहा था की वो खुश हुई या नाराज़ लेकिन मेरी हालत एक अच्छे दोस्त को खोने के ख्याल से ही बिगड़ चुकी थी और मैं शायद गिर ही जाता की अनु के हाथों ने मुझे सहारा दिया और धीरे धीरे मुझे नीचे लेकर आई |वहां मेरी माँ - पिता जी, दीदी -जीजा और मेरी छोटी बहन गुड़िया भी थी, मै सीधे दी के पास जा के बैठ गया और सब के आने का कारण पूछा तो कहने लगी की "तूने गुड़िया से कुछ कहा था न,बस उसी वजह से हम यहाँ आये हैं"| तब जाके मेरी समझ में आया की सबने मिलकर मुझे "मामू " बनाया था यहाँ तक की अनु के भैया और इस अनु की बच्ची ने भी |और फिर हमें पता चला की मेरी दोनों बहने मुझसे छुप छुप कर अनु को भाभी ही बुलाती थी लेकिन वो सिर्फ मेरे प्यार के इज़हार का इंतज़ार कर रही थी | मैंने फिर पूछा की "अगर तुम भी मुझे प्यार करती थी तो क्या तुम नहीं बता सकती थी " और फिर हमारी शादी की तैयारियां चलने लगी थी | आज मैं दूल्हा बन रहा था और तैयार होने के लिए मुझे नहलाने के लिए उठाया जा रहा था जब मेरे चेहरे पर पानी गिरा और आँख खुली तो सारा सपना पल भर में चकना चूर हो गया | और मैं बदहवास सा बैठा ही रह गया | एक पल में ही सारी खुशियाँ ख़तम हो चुकी थी और मैं जिंदगी भर अपने प्यार का इज़हार नहीं कर सका था | सपने में ही सही लेकिन मैंने जो प्यार मांगा था वो मिल गया," लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है ?"
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उम्मीद

हमारी आँखों में भी मोहब्बत का सितारा होगा 
एक दिन आएगा कि वो शक्स हमारा होगा || 
जिसे हम चाहते हैं दिल की गहराईयो से 
कभी तो वो दिलबर हमारा होगा || 
जिसको हम सोचते रहते हैं रात की तनहाइयों में 
कभी तो उसके लबों पे नाम हमारा होगा || 
मुस्कुराने की वजह हमेशा ख़ुशी नहीं होती 
वो भी तो मेरी तरह मोहब्बत का सताया होगा || 
अचानक से बढ़ने लगी हैं मेरे दिल की धड़कने 
शायद उसकी धडकनों ने मेरा नाम हौले से गुनगुनाया होगा || 
तू मिल गई जिंदगी संवर गई 
मेरी किस्मत को तूने अपने हाथों से सजाया होगा ||

Thursday, January 7, 2010

सीटी

सीटी सुनने में कितना अजीब सा नाम लगता है ना। सीटी मेरे पालतू कुत्ते का नाम था। वैसे तो मुझे सभी जानवर अच्छे लगते है, और हमारे घर में बहुत से जानवर पाले गए परन्तु सीटी की एक अलग ही बात थी। हम उसे कभी नहीं भूल पाएंगे। सीटी हमारा पालतू कुत्ता ही नहीं हमारे घर के एक सदस्य जैसा था। मुझे ये बिलकुल याद नहीं है की वो कब से हमारे घर में था। मुझे जहाँ तक याद पड़ता है मैं उस समय बहुत छोटी थी शायद तब मैं स्कूल भी नहीं जाने लगी थी, तब सीटी हमारे घर में था। मम्मी बताती है कि सीटी का जन्म हमारे पड़ोस में ही हुआ था और सीटी के जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसकी माँ चलबसी मम्मी बताती है कि सीटी का एक भाई भी है जो हमारे ही पड़ोसियों के घर पला था। वैसे मैंने सीटी को कभी छोटा नहीं देखा, यानि जब वो एक पिल्ला था। शायद मैं तब इतनी छोटी थी कि मुझे याद नहीं कि सीटी अपने बचपन में कैसा दिखता था ? वो बहुत ही प्यारा और समझदार था हम जब भी उसे आवाज़ देते थे वो कहीं भी हो भागकर हमारे सामने खडा होकर दुम हिलाने लगता था जब भी हम कहीं से आते थे तो वो हमारे पैरों में लोटने लगता था। हमारा सीटी हल्के भूरे रंग का था तथा उससे लम्बे लम्बे बाल थे और उसका कद बाकि कुत्तों से ऊचां था। हमारे पड़ोस में और किसी के पास ऐसा कुत्ता नहीं था। हम सभी लोग सीटी को बहुत प्यार करते थे। वैसे तो पूरे दिन सीटी को हम बाँध कर नहीं रखते थे परन्तु रात में हम उससे चैन से बाँध देते थे। वैसे तो सीटी किसी को कुछ नहीं कहता था बस पूरे दिन घर के दरवाजे पर सोता था या फिर घर के अन्दर हमारे साथ खेल रहा होता था, परन्तु यदि कोई उससे मारता था तो वो उससे दूर तक दौडाता और उसके पीछे भागता था ताकि वह दुबारा ऐसा काम न करे, परन्तु उसने कभी किसी बच्चे को काटा नहीं। अगर कोई अजनबी हमारे घर में आता तो वह तब तक हमारे साथ खड़ा रहता जब तक वो अजनबी चला ना जाये। जितना ध्यान हम उस रखते उतना ही वो भी हमारा रखता। जब हम सारे भाई - बहन स्कूल जाते तो वो हमे स्कूल तक छोड़ कर आता और छुट्टी होने पर भी वो हमे स्कूल से लेने आता। वैसे तो हमारा स्कूल घर क पास ही था। फिर भी वो हमे स्कूल तक पंहुचा कर आता था। जब हमारे पिताजी ऑफिस के लिए घर से निकलते तो गली के अंत तक उनके साथ जाता। इतना काम करने के बाद वो आपना खाना खाता, जिसमें उसे ४ या ५ रोटी मिलती और साथ में एक कटोरा भर कर लस्सी मिलती थी। आपना खाना ख़त्म करने के बाद वो आराम से सो जाता। और लगभग २ घंटे सोने के बाद वो फिर से हमारे स्कूल के बाहर खड़े हमारी छुट्टी का इंतज़ार करता। और स्कूल से आने के बाद हम उस के साथ खेलते। एक दिन की बात है जब रोज़ की तरह हमने उसे चेन से बाँधा और हम सब सो गए, सीटी आराम से बैठा हुआ था कि अचानक घर में कोई घुस गया, पर हम सब आराम से सोये हुए थे। परन्तु सीटी को उस के आने कि आहट सुनाई पड़ गयी और वो उठ कर तेज तेज भोकने लगा, उसके भोंकने से हम सब की आँख खुल गयी। और उसके भोंकने की आवाज़ सुन कर चोर भी डर कर भाग गया। उस दिन सीटी की वजह से हमारे घर में चोरी होने से बच गयी। अगर उस दिन सीटी जंजीर से नहीं बंधा होता तो शायद वो चोर को भागने का भी मौका नहीं देता। उस दिन के बाद से हमने उसे रात को जंजीर से बांधना छोड़ दिया। अब सीटी रात को भी खुला रहता और पूरे घर में घूम घूम कर रात भर घर की रखवाली करता। सीटी हमारे साथ इतना घुल मिल गया था कि हमने ये कभी सोचा ही नहीं कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि सीटी हम सब को छोड़ कर चला जायेगा। सीटी कि उम्र १२ साल हो चुकी थी, अब वो पहले कि तरह चुस्त नहीं रहा था तथा ज्यादा समय सोकर ही बीताता था। पर हमने कभी इस बात पर गौर ही नहीं किया, और हमेशा ही तरह ही उसका ख्याल रखते थे। परन्तु एक दिन जब सीटी ने कुछ खाया नहीं तो हमे अजीब सा लगा, हमने सोचा कि शायद उसकी तबियत ठीक न हो और हम आपने काम में लग गए। उस दिन हमने उसे परेशान भी नहीं किया और ये सोच कर सोने दिया कि वह आराम कर रहा है। सुबह से शाम हो गयी पर सीटी सोता रहा। जब हमने उसे शाम को ढूध दिया तो उसने अपनी आँखें खोल कर हम सब को एक बार देखा हम सब को उसे देख कर ऐसा लगा जैसे वो हमे कुछ कहना चाहता हो, परन्तु बिना कुछ हरकत किये वो फिर से आँखें बंद कर के सो गया। हमें लगा कि उसकी तबियत बहुत ख़राब है और हम उसे डॉक्टर के पास ले जाने कि तैयारी करने लगे। पिताजी और भैया उसको जानवरों के डॉक्टर के पास ले गए। परन्तु अब डॉक्टर भी कुछ नहीं कर सकता था क्योकि अब उसकी उम्र पूरी हो चुकी थी। इसलिए भैया और पिताजी उससे घर ले आये। हम सारी रात उसके पास बैठे रहे, पर पता नहीं कब उस ने आपने प्राण त्याग दिए। जब हमने उससे सुबह देखा तो वह हम सब को छोड़ कर जा चुका था। हम सब बहुत दुखी थे, और हम सीटी के अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे। हमारे घर के कुछ ही दूर खाली जगह थी, जहाँ पर हमने एक गड्डा खोद कर उससे दबा दिया। और हम सब घर वापिस लौट आये। हमारा घर सीटी के बिना सूना सूना हो गया था। उस दिन हमने सीटी के गम में खाना भी नहीं खाया, और पूरे दिन सीटी को याद करते रहे।