Pages

परिचय


दोस्तों! कुछ कहानियाँ ब्लॉग में आपका स्वागत है यहाँ पर कुछ ऐसी कहानिया है जिनमें अहसाह छुपा है, कुछ ऐसी बातों का जो हम किसी से कह नहीं सकते पर कहानी में ढालकर उन्हें आपके सामने पेश कर सकते है। कुछ ऐसी ही दिल की बाते जो हम होंठों से नहीं कह पाते, पर फिर भी हम चाहते है कि हम वो अहसास दुसरो को बताये। दोस्तों ये जरुरी नहीं कि कहानिया केवल प्यार कि ही हो सकती है। हम अपनी सोच को या विचारों को भी कहानी का रूप दे सकते है। हम अपने आस पास के वातावरण में अगर कुछ बदलाव लाना चाहते है तो भी हम उसे कहानी में ढाल कर लोगो तक अपनी दिल कि बात पंहुचा सकते है। या फिर हम अपने समाज में हो रही बुराइयों को खत्म करने का प्रयास भी कहानी के जरिये कर सकते है।



Thursday, January 7, 2010

सीटी

सीटी सुनने में कितना अजीब सा नाम लगता है ना। सीटी मेरे पालतू कुत्ते का नाम था। वैसे तो मुझे सभी जानवर अच्छे लगते है, और हमारे घर में बहुत से जानवर पाले गए परन्तु सीटी की एक अलग ही बात थी। हम उसे कभी नहीं भूल पाएंगे। सीटी हमारा पालतू कुत्ता ही नहीं हमारे घर के एक सदस्य जैसा था। मुझे ये बिलकुल याद नहीं है की वो कब से हमारे घर में था। मुझे जहाँ तक याद पड़ता है मैं उस समय बहुत छोटी थी शायद तब मैं स्कूल भी नहीं जाने लगी थी, तब सीटी हमारे घर में था। मम्मी बताती है कि सीटी का जन्म हमारे पड़ोस में ही हुआ था और सीटी के जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसकी माँ चलबसी मम्मी बताती है कि सीटी का एक भाई भी है जो हमारे ही पड़ोसियों के घर पला था। वैसे मैंने सीटी को कभी छोटा नहीं देखा, यानि जब वो एक पिल्ला था। शायद मैं तब इतनी छोटी थी कि मुझे याद नहीं कि सीटी अपने बचपन में कैसा दिखता था ? वो बहुत ही प्यारा और समझदार था हम जब भी उसे आवाज़ देते थे वो कहीं भी हो भागकर हमारे सामने खडा होकर दुम हिलाने लगता था जब भी हम कहीं से आते थे तो वो हमारे पैरों में लोटने लगता था। हमारा सीटी हल्के भूरे रंग का था तथा उससे लम्बे लम्बे बाल थे और उसका कद बाकि कुत्तों से ऊचां था। हमारे पड़ोस में और किसी के पास ऐसा कुत्ता नहीं था। हम सभी लोग सीटी को बहुत प्यार करते थे। वैसे तो पूरे दिन सीटी को हम बाँध कर नहीं रखते थे परन्तु रात में हम उससे चैन से बाँध देते थे। वैसे तो सीटी किसी को कुछ नहीं कहता था बस पूरे दिन घर के दरवाजे पर सोता था या फिर घर के अन्दर हमारे साथ खेल रहा होता था, परन्तु यदि कोई उससे मारता था तो वो उससे दूर तक दौडाता और उसके पीछे भागता था ताकि वह दुबारा ऐसा काम न करे, परन्तु उसने कभी किसी बच्चे को काटा नहीं। अगर कोई अजनबी हमारे घर में आता तो वह तब तक हमारे साथ खड़ा रहता जब तक वो अजनबी चला ना जाये। जितना ध्यान हम उस रखते उतना ही वो भी हमारा रखता। जब हम सारे भाई - बहन स्कूल जाते तो वो हमे स्कूल तक छोड़ कर आता और छुट्टी होने पर भी वो हमे स्कूल से लेने आता। वैसे तो हमारा स्कूल घर क पास ही था। फिर भी वो हमे स्कूल तक पंहुचा कर आता था। जब हमारे पिताजी ऑफिस के लिए घर से निकलते तो गली के अंत तक उनके साथ जाता। इतना काम करने के बाद वो आपना खाना खाता, जिसमें उसे ४ या ५ रोटी मिलती और साथ में एक कटोरा भर कर लस्सी मिलती थी। आपना खाना ख़त्म करने के बाद वो आराम से सो जाता। और लगभग २ घंटे सोने के बाद वो फिर से हमारे स्कूल के बाहर खड़े हमारी छुट्टी का इंतज़ार करता। और स्कूल से आने के बाद हम उस के साथ खेलते। एक दिन की बात है जब रोज़ की तरह हमने उसे चेन से बाँधा और हम सब सो गए, सीटी आराम से बैठा हुआ था कि अचानक घर में कोई घुस गया, पर हम सब आराम से सोये हुए थे। परन्तु सीटी को उस के आने कि आहट सुनाई पड़ गयी और वो उठ कर तेज तेज भोकने लगा, उसके भोंकने से हम सब की आँख खुल गयी। और उसके भोंकने की आवाज़ सुन कर चोर भी डर कर भाग गया। उस दिन सीटी की वजह से हमारे घर में चोरी होने से बच गयी। अगर उस दिन सीटी जंजीर से नहीं बंधा होता तो शायद वो चोर को भागने का भी मौका नहीं देता। उस दिन के बाद से हमने उसे रात को जंजीर से बांधना छोड़ दिया। अब सीटी रात को भी खुला रहता और पूरे घर में घूम घूम कर रात भर घर की रखवाली करता। सीटी हमारे साथ इतना घुल मिल गया था कि हमने ये कभी सोचा ही नहीं कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि सीटी हम सब को छोड़ कर चला जायेगा। सीटी कि उम्र १२ साल हो चुकी थी, अब वो पहले कि तरह चुस्त नहीं रहा था तथा ज्यादा समय सोकर ही बीताता था। पर हमने कभी इस बात पर गौर ही नहीं किया, और हमेशा ही तरह ही उसका ख्याल रखते थे। परन्तु एक दिन जब सीटी ने कुछ खाया नहीं तो हमे अजीब सा लगा, हमने सोचा कि शायद उसकी तबियत ठीक न हो और हम आपने काम में लग गए। उस दिन हमने उसे परेशान भी नहीं किया और ये सोच कर सोने दिया कि वह आराम कर रहा है। सुबह से शाम हो गयी पर सीटी सोता रहा। जब हमने उसे शाम को ढूध दिया तो उसने अपनी आँखें खोल कर हम सब को एक बार देखा हम सब को उसे देख कर ऐसा लगा जैसे वो हमे कुछ कहना चाहता हो, परन्तु बिना कुछ हरकत किये वो फिर से आँखें बंद कर के सो गया। हमें लगा कि उसकी तबियत बहुत ख़राब है और हम उसे डॉक्टर के पास ले जाने कि तैयारी करने लगे। पिताजी और भैया उसको जानवरों के डॉक्टर के पास ले गए। परन्तु अब डॉक्टर भी कुछ नहीं कर सकता था क्योकि अब उसकी उम्र पूरी हो चुकी थी। इसलिए भैया और पिताजी उससे घर ले आये। हम सारी रात उसके पास बैठे रहे, पर पता नहीं कब उस ने आपने प्राण त्याग दिए। जब हमने उससे सुबह देखा तो वह हम सब को छोड़ कर जा चुका था। हम सब बहुत दुखी थे, और हम सीटी के अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे। हमारे घर के कुछ ही दूर खाली जगह थी, जहाँ पर हमने एक गड्डा खोद कर उससे दबा दिया। और हम सब घर वापिस लौट आये। हमारा घर सीटी के बिना सूना सूना हो गया था। उस दिन हमने सीटी के गम में खाना भी नहीं खाया, और पूरे दिन सीटी को याद करते रहे।

Monday, December 21, 2009

यादें

पुरानी यादें हमारे जीवन से इस प्रकार जुडी होती है कि हम कितनी भी कोशिश करें उन्हें भूलने कि पर वो कहीं ना कहीं हमारे जीवन में फिर लौट ही आती है। कुछ यादें बहुत सुहानी होती है जिन्हें हम भूल तो जाते है पर जब वो हमें याद आती है तो हमारे जीवन में एक नयी उमंग भर देती है वो अहसास करा जाती है जो सालों पहले हमनें महसूस किया था। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ जब मैंने १५ साल बाद उसे दुबारा देखा। मेरा नाम प्रेरणा है। मैं बंगलोर से दिल्ली वापस आ रही थी, हवाई अड्डे पर खड़ी अपनी फलाईट का इंतजार कर रही थी। मेरी फलाईट में अभी २ घंटे बाकि थे, कि अचानक ही मेरी नज़र सामने खड़े एक शख्स पर ठहर गयी। उसे देखते ही मैं १५ साल पीछे लौट आई जब मैंने उसे पहली बार देखा था। हमारे ही ऑफिस में मैंने उसे पहली बार देखा था और देखते ही मैं उसकी और आकर्षित होने लगी मन में उसके लिए एक अलग सी जगह बन गयी थी। ऐसा लगता मानो समय रुक जाये और मैं एक टक उसको देखती रहूँ, शायद मुझे उससे प्यार हो गया था। मैं हमेशा उस के बारे में ही सोचती रहती, मेरे कानों में उसी का नाम गूंजता रहता। और नाम भी इतना प्यारा था अनुराग। केवल एक बार देखने पर ऐसा हाल अगर कभी बात करने का मौका मिला तो क्या होगा, बस यही सवाल मैं अपने आप से पूछती। मेरे ऑफिस में वो मेरे सिनीयर थे और सबसे बुरी बात ये थी की मुझे उनको रिपोर्ट भी नहीं करना होता था। मैं हमेशा यही सोचती कि शायद मेरी और उसकी बात कभी नहीं होगी। मुझे बस इसी का इंतज़ार रहता की कब मैं अनुराग को देख पाऊँगी। और एक दिन मुझे ये खबर मिली की वो हम सब से मिलने के लिए हमारे ही डिपार्टमेंट में आ रहे है। इतना सुनना था कि मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा मन ही मन मैं खुश होने लगी और भगवान् को धन्यवाद दिया की भगवान् ने मुझे एक बार तो उसके सामने जाने का और उन से बात करने का मौका दिया। अब मुझे बेसब्री से उस पल का इंतज़ार था जब वो हमसे मिलने आये। आखिर वो पल आ ही गया, हम सब अपने सिनीयर के साथ उनके इंतज़ार में खड़े थे कि सामने से वो आते दिखाई दिया। मेरे मन में अजीब सी ख़ुशी थी जैसे कि मुझे ना जाने कोण सा खज़ाना मिल गया हो। उसके बाद उनसे हम सब का परिचय करवाया गया और फिर मुझे अपने काम का बारे में उन्हें बताने क लिए कहा गया। मैं उनके ही साथ वाली कुर्सी पर बैठ कर अपने काम के बारे में उन्हें बताने लगी। पर मेरी नज़र तो उन पर ही थी। और वो कंप्यूटर कि तरफ देखते रहे। थोड़ी देर में जब मैंने अपनी बात पूरी कर ली और उन्हें अपने काम के बारे में पूरी जानकारी दे दी तब वो हमारे डिपार्टमेंट से हम सब को बाय कर के चले गए। हम सब वापिस अपनी जगह पर आ गए और अपने कामों में लग गए। पर मेरी आखों के आगे तो अनुराग का ही चेहरा घूम रहा था। पता ही नहीं चला कि कब ६ बज गए और ऑफिस कि छुट्टी हो गयी। घर पहुचने पर भी मेरे दिमाग में अनुराग का ही नाम था। मैंने जल्दी जल्दी घर का काम समेटा और सोने की तैयारी करने लगी। लगभग १०:३० तक अपना काम ख़तम कर मैं बिस्तरे में सोने चली गयी। पर नींद किसे आती मैं घंटो तक अनुराग के बारे में सोचती रही। और ना जाने कब नींद आ गयी। सुबह भी मेरी नींद जल्दी ही खुल गयी लेकिन फिर भी मैं उठी नहीं और लेटे लेटे अनुराग के ही खयालो में खो गयी। तभी घडी पर नज़र पड़ी तो देखा ८ बज चुके थे। उठने का मन तो नहीं था पर फिर ऑफिस जा कर अनुराग को देखने की इच्छा ने उठने पर मजबूर कर दिया। अब तो रोज़ यही होता रात भर अनुराग के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सो जाती और सुबह जब भी आखें खुलती तो फिर से उसी क बारे में सोचने लगती। बस यूँ ही दिन बीत गए और एक दिन मुझे खबर मिली की अनुराग की सगाई हो गयी है। पर पता नहीं मुझे इस खबर को सुन कर कोई दुःख नहीं हुआ। क्योकि शायद मैं ये बहुत अच्छी तरह जानती थी कि अनुराग बस मेरे खयालो में ही रह सकते है मेरे जीवन में नहीं। जल्दी ही अनुराग कि शादी कि खबर भी आ गयी और हम सब ने मिल कर उनको शादी कि मुबारकबाद भी दी। पर अनुराग शादी के बाद भी मेरे लिए वो ही अनुराग रहे जो वो तब थे जब मैंने उन्हें पहली बार देखा था। धीरे - धीरे समय बीतता गया और मैं अनुराग कि यादों के साथ अपने काम में व्यस्त हो गयी। कुछ समय बाद ही मैंने अपनी जॉब बदल ली और अपनी जिन्दगी में व्यस्त हो गयी। पर आज फिर से अनुराग को इस तरह देख कर मेरे मन में उसके लिए वही अहसास होने लगा जो पहली बार उसे देख कर हुआ था। और तब कि तरह ही मैंने आज भी उसे अपने मन तक ही रखा। बस मैं उसे देख कर मन ही मन खुश हों गयी। और वो ना जाने कब वहां से चले गए। पर वो याद मेरे मन में फिर से उनके प्यार का अहसास जगा गयी।

Tuesday, December 15, 2009

परिचय

दोस्तों! कुछ कहानियाँ ब्लॉग में आपका स्वागत है यहाँ पर कुछ ऐसी कहानिया है जिनमें अहसाह छुपा है, कुछ ऐसी बातों का जो हम किसी से कह नहीं सकते पर कहानी में ढालकर उन्हें आपके सामने पेश कर सकते है। कुछ ऐसी ही दिल की बाते जो हम होंठों से नहीं कह पाते, (जैसे हम कभी कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं कर सकते, लेकिन हम ये दिखाना चाहते हैं कि हम कितना प्यार करते हैं ) पर फिर भी हम चाहते है कि हम वो अहसास दुसरो को बताये। अतः यहाँ पर आप लोग अपने विचारों को कहानी के रूप में ढाल कर यहाँ पर प्रकाशित कर सकते है। कुछ हिंदी कहानिया जिनके द्वारा आप अपने अहसासों व विचारो का आदान प्रदान भी कर सकते है। दोस्तों ये जरुरी नहीं कि कहानिया केवल प्यार कि ही हो सकती है। हम अपनी सोच को या विचारों को भी कहानी का रूप दे सकते है। हम अपने आस पास के वातावरण में अगर कुछ बदलाव लाना चाहते है तो भी हम उसे कहानी में ढाल कर लोगो तक अपनी दिल कि बात पंहुचा सकते है। या फिर हम अपने समाज में हो रही बुराइयों को खत्म करने का प्रयास भी कहानी के जरिये कर सकते है। इसके आलावा यदि आप कहानी के जरिये कोई शिक्षा देना चाहते है तो वो भी आप यहाँ पर प्रकाशित करवा सकते हैं।