जिंदगी सच में कितनी अजीब होती है, हमें पता ही नहीं चलता की हमारी जिन्दगी किस समय कौन सा रूप लेगी। बस हम सभी रोज़ अपनी अपनी जिन्दगी जीते चले जाते है बिना ये सोचे की हमारी जिंदगी का आगे क्या होने वाला है। हमारी जिंदगी हमारे लिए रोज़ नयी चुनोतियाँ हमारे सामने रखती है और हम उन चुनोतियों को स्वीकार करते करते कितने बदल जाते है हमे पता ही नहीं चलता। और जब हम अपने भूतकाल के बारे में सोचते है तब हमे ख्याल आता है की हम कितने बदल गए है। जब भी मैं अपने बीते हुए कल के बारे में सोचती हूँ तो मुझे हमेशा मन्ना दे का आनंद फिल्म का गाना याद आ जाता है।
जिंदगी ................ कैसी है पहेली, हाय
कभी तो हसाए, कभी ये रुलाये
जिंदगी ........................
सच बिलकुल सही है ये गाना, कभी एक छोटी सी ख़ुशी मिलने पर ही हम जिंदगी से इतना खुश हो जाते है कि लगता है कि जिंदगी ने हमें सब कुछ दे दिया, और कभी कभी जब हम तकलीफ में होते है तो लगता है कि हम क्यों अपनी जिंदगी जीते चले जा रहे है। हमारी जिन्दगी तब से शुरू होती है जब हम पैदा होते है, तब तो हमे जिन्दगी का मतलब भी नहीं पता होता उसके बाद हमरा बचपन जिस में कई शरारते होती है और उन शरारतों को करते करते हम कब बड़े हो जाते है पता ही नहीं चलता।
जब हम छोटे होते है तो हमे लगता है की हम कब इतने बड़े होंगे की हम भी अकेले बहार जायेगे। हम भी किसी ऑफिस में काम करेगें और पैसे कमाएंगे, तब ये सोच कर बहुत अच्छा लगता है की हम भी काम करके मम्मी पापा जैसे पैसे कम कर लायेंगें और जो पसंद होगा वो ही खरीदेंगे। और सच जब हम अपनी पदाई पूरी कर के नौकरी करना सुरु करते है तो हर तरफ एक अलग सी खुसी नज़र आती है और पहली नौकरी की पहली तनख्वा लेना तो सच में मन में एक अलग ही कुशी पैदा करती है। पहली तनख्वा मिलने पर ऐसा लगता है जैसे ना जाने हमे क्या मिल गया हो। जो तमन्ना बरसो से थी वो आज पूरी हो गयी। हाथ में पैसे पकड़ते हुए जो दिल में ख़ुशी हो रही होती है उसे बयां नहीं किया जा सकता ।
वो ख़ुशी मिलने के बाद अब हमारी खुशियाँ कुछ और पाने में हो जाती है| ना जाने कब और कैसे कोई हमें इतना प्यारा हो जाता है की हमें उस के अलवा कोई और नज़र ही नहीं आता|और ऐसा ही मेरे साथ हुआ अभी मुझे ऑफिस में आये जयादा दिन भी नहीं हुए थे की मैंने साहिल को काम करते हुए देखा| ना जाने क्यों उसे देख कर ऐसा लगा कि काश वो मुझे जानता होता और मैं उस से बात कर पाती| अभी मुझे इस ऑफिस में आये 1 महीना ही हुए थे कि मुझे पता चला कि जिस टीम का इंचार्ज साहिल है उस टीम से हमारा भी co-ordination है |यह जान कर मुझे ख़ुशी तो हुई लेकिन इस से भी मुझे उस से बात करने का मौका तो नहीं मिलेगा इस लिए बस अपने मन को समझाने के अलवा कोई और रास्ता नहीं था|कभी कभी मुझे ऐसा लगता कि शायद ये कुछ दिनों के लिए है थोड़े दिनों में सब नोर्मल हो जायेगा मतलब मैं उस कि और कुछ समय के लिए ही आकर्षित हुई हूँ |यही सोचते और आपने मन को समझाते हुए समय बीत रहा था | एक दिन हमे पता चला कि हम सब कि सीट बदल रही है और साहिल कि टीम हमारी टीम के ठीक सामने बैठेगी| और जल्दी ही ऐसा हो गया और साहिल कि सीट लगभग मेरे सामने ही थी जिस वजह से वो मुझे हमेशा दिखाई देता था| सीट सामने होते हुए भी मेरी उस से बात तो नहीं हो पाती थी परन्तु उससे चुपके से देखने का मौका तो मिल ही जाता था| अभी मुझे ६ महीने ही हुए थे कि हमारी टीम के इंचार्ज को दूसरी टीम में शिफ्ट कर दिया और मेरे काम को देखते हुए मुझे सारी जिमेदारी दे दी गयी| नई जिम्मेदारी मिलते ही मेरा पूरा ध्यान मेरे काम पर चला गया और कुछ समय क लिए मेरे दिमाग से साहिल का ख्याल निकल गया| लगभग एक महीने बाद मुझे मेरी टीम का इंचार्ज बना दिया गया |और उसी समय मेरी टीम और काम में इतने बदलाव आये कि मेरा पूरा ध्यान उसे सुधारने पर ही लग गया और लगभग ३ महीने कि मेहनत के बाद मुझे ऐसा लगा कि शायद अब मेरे पास थोडा साँस लेने का टाइम है|
इन ६ महीनो में ऐसा नहीं था कि मैं उसे भूल गई थी पर हाँ मैंने कोशिश जरूर की। लेकिन मेरे लिए उसे भूलना आसान नहीं था। धीरे -धीरे समय बीतता गया लेकिन मेरे दिमाग से साहिल का ख्याल जाता ही नहीं था। लगभग १ साल बीत चुका था मुझे इस ऑफिस में आये लेकिन मैं साहिल से कभी अपने दिल की बात कह ही नहीं पाई।
जिंदगी ................ कैसी है पहेली, हाय
कभी तो हसाए, कभी ये रुलाये
जिंदगी ........................
सच बिलकुल सही है ये गाना, कभी एक छोटी सी ख़ुशी मिलने पर ही हम जिंदगी से इतना खुश हो जाते है कि लगता है कि जिंदगी ने हमें सब कुछ दे दिया, और कभी कभी जब हम तकलीफ में होते है तो लगता है कि हम क्यों अपनी जिंदगी जीते चले जा रहे है। हमारी जिन्दगी तब से शुरू होती है जब हम पैदा होते है, तब तो हमे जिन्दगी का मतलब भी नहीं पता होता उसके बाद हमरा बचपन जिस में कई शरारते होती है और उन शरारतों को करते करते हम कब बड़े हो जाते है पता ही नहीं चलता।
जब हम छोटे होते है तो हमे लगता है की हम कब इतने बड़े होंगे की हम भी अकेले बहार जायेगे। हम भी किसी ऑफिस में काम करेगें और पैसे कमाएंगे, तब ये सोच कर बहुत अच्छा लगता है की हम भी काम करके मम्मी पापा जैसे पैसे कम कर लायेंगें और जो पसंद होगा वो ही खरीदेंगे। और सच जब हम अपनी पदाई पूरी कर के नौकरी करना सुरु करते है तो हर तरफ एक अलग सी खुसी नज़र आती है और पहली नौकरी की पहली तनख्वा लेना तो सच में मन में एक अलग ही कुशी पैदा करती है। पहली तनख्वा मिलने पर ऐसा लगता है जैसे ना जाने हमे क्या मिल गया हो। जो तमन्ना बरसो से थी वो आज पूरी हो गयी। हाथ में पैसे पकड़ते हुए जो दिल में ख़ुशी हो रही होती है उसे बयां नहीं किया जा सकता ।
वो ख़ुशी मिलने के बाद अब हमारी खुशियाँ कुछ और पाने में हो जाती है| ना जाने कब और कैसे कोई हमें इतना प्यारा हो जाता है की हमें उस के अलवा कोई और नज़र ही नहीं आता|और ऐसा ही मेरे साथ हुआ अभी मुझे ऑफिस में आये जयादा दिन भी नहीं हुए थे की मैंने साहिल को काम करते हुए देखा| ना जाने क्यों उसे देख कर ऐसा लगा कि काश वो मुझे जानता होता और मैं उस से बात कर पाती| अभी मुझे इस ऑफिस में आये 1 महीना ही हुए थे कि मुझे पता चला कि जिस टीम का इंचार्ज साहिल है उस टीम से हमारा भी co-ordination है |यह जान कर मुझे ख़ुशी तो हुई लेकिन इस से भी मुझे उस से बात करने का मौका तो नहीं मिलेगा इस लिए बस अपने मन को समझाने के अलवा कोई और रास्ता नहीं था|कभी कभी मुझे ऐसा लगता कि शायद ये कुछ दिनों के लिए है थोड़े दिनों में सब नोर्मल हो जायेगा मतलब मैं उस कि और कुछ समय के लिए ही आकर्षित हुई हूँ |यही सोचते और आपने मन को समझाते हुए समय बीत रहा था | एक दिन हमे पता चला कि हम सब कि सीट बदल रही है और साहिल कि टीम हमारी टीम के ठीक सामने बैठेगी| और जल्दी ही ऐसा हो गया और साहिल कि सीट लगभग मेरे सामने ही थी जिस वजह से वो मुझे हमेशा दिखाई देता था| सीट सामने होते हुए भी मेरी उस से बात तो नहीं हो पाती थी परन्तु उससे चुपके से देखने का मौका तो मिल ही जाता था| अभी मुझे ६ महीने ही हुए थे कि हमारी टीम के इंचार्ज को दूसरी टीम में शिफ्ट कर दिया और मेरे काम को देखते हुए मुझे सारी जिमेदारी दे दी गयी| नई जिम्मेदारी मिलते ही मेरा पूरा ध्यान मेरे काम पर चला गया और कुछ समय क लिए मेरे दिमाग से साहिल का ख्याल निकल गया| लगभग एक महीने बाद मुझे मेरी टीम का इंचार्ज बना दिया गया |और उसी समय मेरी टीम और काम में इतने बदलाव आये कि मेरा पूरा ध्यान उसे सुधारने पर ही लग गया और लगभग ३ महीने कि मेहनत के बाद मुझे ऐसा लगा कि शायद अब मेरे पास थोडा साँस लेने का टाइम है|
इन ६ महीनो में ऐसा नहीं था कि मैं उसे भूल गई थी पर हाँ मैंने कोशिश जरूर की। लेकिन मेरे लिए उसे भूलना आसान नहीं था। धीरे -धीरे समय बीतता गया लेकिन मेरे दिमाग से साहिल का ख्याल जाता ही नहीं था। लगभग १ साल बीत चुका था मुझे इस ऑफिस में आये लेकिन मैं साहिल से कभी अपने दिल की बात कह ही नहीं पाई।